________________
१. अनुभव जागे
हम सब दुःख से मुक्त होना चाहते हैं। हम ही नहीं, संसार का प्रत्येक प्राणी दुःख से मुक्त होना चाहता है। सुख सब चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता। यह एक प्राकृतिक और सार्वभौम नियम है। इसका कोई अपवाद नहीं है। प्रश्न होता है कि जब हम सब दुःख-मुक्त होना चाहते हैं, तो मुक्त क्यों नहीं हो पाते? दुःख-मुक्ति की हमारी तीव्र चाह है, पर वह पूरी नहीं होती। ऐसा क्यों? इस प्रश्न के पीछे जो रहस्य है, उसे हम समझें। सुख-दुःख का संवेदन क्यों?
सुख और दुःख-ये दो तत्त्व हैं। हम इस बात को न भूलें कि सुख के घटक भी हम ही हैं और दुःख के घटक भी हम ही हैं। हम ही सुख-दुःख का बीज बोते हैं, हम ही उसे अंकुरित करते हैं, पुष्पित करते हैं और पल्लवित करते हैं। हम ही उसे बढ़ाते हैं, विशाल वृक्ष के रूप में विकसित करते हैं। इन सारी क्रियाओं में दूसरा कोई उत्तरदायी नहीं है। यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि हम दूसरों को सुख-दुःख देने वाला मानते हैं। यह भ्रान्ति टूटनी चाहिए। दुनिया में कोई कुछ देने वाला नहीं है। यदि हम दुःख का संवेदन करें तो हमें दुःख होता है और यदि हम दुःख का संवेदन न करें तो हमें दुःख नहीं होता। अनेक प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियां सामने हों और यदि हम दुःख का संवेदन नहीं करते तो हमें कोई दुःख नहीं हो सकता। हजार प्रकार की सुख की सुविधाएं उपलब्ध हों और यदि हम सुख का संवेदन नहीं करते तो हमें कोई सुख नहीं हो सकता। दुःख और सुख का संवेदन होना हमारे संवेदन-केन्द्र पर निर्भर करता है। हमारा संवेदन-केन्द्र कार्य करता है तो सुख-दुःख का संवेदन होता है और यदि वह कार्य नहीं करता है तो कोई संवेदन नहीं होता। हमारे मस्तिष्क के पीछे पीड़ा-केन्द्र है। आज के वैज्ञानिक यह प्रयोग कर रहे हैं कि औषधियों के द्वारा उस केन्द्र को निष्क्रिय बना दिया जाए जिससे कि व्यक्ति पीड़ा का संवेदन न कर सके। इस दिशा में प्रयत्न चालू हैं। अनेक प्रकार की ओषधियां आविष्कृत हुई हैं और उनका प्रयोग भी चल रहा है। जब पीड़ा-केन्द्र पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो जाता है तब पीड़ा का संवेदन समाप्त हो जाता है। फिर शरीर पर चाहे कहीं कुछ पीड़ा हो, व्यक्ति को उसका अनुभव ही नहीं होता। पीड़ा देता है यह संवेदन-केन्द्र। यदि यह केन्द्र निष्क्रिय हो जाता है तो फिर कोई भी घटना घटित हो, उसका संवेदन नहीं होगा। मनुष्य की सबसे बड़ी भ्रान्ति यह है कि वह घटना को मुख्य मान लेता है, परिस्थिति और वातावरण को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org