Book Title: Apbhramsa Bharti 2003 15 16
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ सम्पादकीय “हिन्दी साहित्य के आदिकालीन इतिहास का स्वर्णयुग अगर कोई माना जा सकता है तो वह है- अपभ्रंश का जैन साहित्य। अपभ्रंश भाषा और उसका साहित्य एक जन-आन्दोलन है जिसमें एक नई परम्परा, लोक-परम्परा की शुरुआत होती है।" ___ “सामान्य चरित्रों को रचना का नायक बनाकर अपभ्रंश के कतिपय जैन कवियों ने भावी हिन्दी साहित्य के समक्ष एक मानदण्ड स्थापित किया। धनपाल की 'भविसय-तकहा' इसी प्रकार की एक रचना है।" “धनपाल ने अपभ्रंश साहित्य को दो रचनाएँ दीं- 'भविसयत्तकहा' एवं 'बाहुबलिचरिउ'।" “धनपाल को अपनी काव्य-प्रतिभा पर घमण्ड था। अपने आपको वे सरस्वती का पुत्र (सरसइ बहल्लद्ध महावरेण) कहते थे। डॉ. हरमन याकोबी इनका समय दसवीं शती मानते थे। प्रो. भायाणी ने 'भविसयत्तकहा' की भाषा को देखकर इसको स्वयंभू के बाद तथा हेमचन्द्र से पहले की रचना बताया है। राहुलजी के अनुसार ये सम्भवतः गुजरात के निवासी थे। राहुलजी इनका समय 1000 ईसवी मानते हैं।" ___ “धनपाल भारतीय साहित्य की परम्पराओं, भारतीय संस्कृति के भी पुरोधा हैं। तभी तो वे माँ-बेटे की भावनाओं को पारम्परिक ढंग से वाणी देते हुए भी उसे आधुनिक चेतना का पर्याय बना देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में इनका और इनकी इस रचना का प्रभाव सूरदास आदि कवियों पर तो पड़ा ही, साथ ही आधुनिककालीन कथा-साहित्य भी धनपाल और ‘भविसयत्तकहा' से अप्रभावित नहीं रह पाया।" ___ "रस-निरूपण, छन्द-निर्मिति, अलंकार-आयोजन के साथ-साथ परम्परा से अलग हटकर लोकजीवन से चरित्रों का चयन, उनकी कथा, शब्द-चयन-समता, चित्रात्मक भाषा, उक्ति-वक्रता धनपाल की इस रचना को हिन्दी साहित्य की अमर कृति बना देती है।" “रामकथा संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में प्रचलित रही है। आदि कवि वाल्मिकी ने राम को आदर्श मानव, जैन कवियों ने उन्हें भव्यपुरुष एवं तुलसीदास ने भगवान के रूप में स्वीकार किया है, अतः राम का व्यक्तित्व बहुआयामी हो गया है।" "जैन परम्परा में रामकथा को प्रस्तुत करनेवाले महाकवि विमलसूरि हैं। उन्होंने अपने प्राकृत ग्रन्थ 'पउमचरियं' में राम को एक साधारण मानव की दृष्टि से चित्रित किया है। आचार्य रविषेण ने संस्कृत ग्रन्थ 'पद्मपुराण' में राम के सर्वांगीण सौन्दर्य को चित्रित किया है। उन्हें दया, करुणा, प्रेम, शील, शक्ति का खजाना माना है। ‘पउम (vii)

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