Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ अनुसंधान-३० प्रश्नकुण्डलिकाओं पर आधारित यह धर्मलाभशास्त्र ग्रन्थ अभी तक अप्राप्त रहा है । फलित-ज्ञान और ज्योतिर्विज्ञान की दृष्टि से यह ग्रन्थ अध्ययन योग्य है, अत्यन्त उपयोगी है और प्रकाशन योग्य है । इस ग्रन्थ का आद्यन्त भाग प्रत्येक अधिकार के साथ प्रस्तुत है :ग्रन्थ का मंगलाचरण - प्रथम अधिकार औं नमः सिद्धरूपाय, श्रीनाभितनुजन्मने ।। अर्हते केवलज्ञाय, पुरुषोत्तमतेजसे ॥१॥ औंकाररूपध्येयो-ऽर्हशङ्केश्वरप्रतिष्ठितः । श्रीपार्श्वः केशवैश्चक्र-धरैः पूज्यः श्रियेऽस्तु सः ॥२॥ दशावतारैर्यो गेयः श्रेयः श्रीपरमेश्वरः ।। इष्टः श्रीधर्मलाभाय भूयाद्भव्यतनूभृताम् ॥३॥ श्रीसहस्रांशुना न्यस्तं यथा ज्योतिर्गणाधिपे । तथा श्रीपार्श्वपूजो स्वं ज्योतिः स्फुरति केशवे ॥४॥ दशावतारस्तेनैव श्रीकृष्णस्त्रिजगतप्रियः । अश्वसेनाभिनन्दी च भविष्यति जिनेश्वरः ॥५॥ श्रीवर्धमानस्तेजोभि-वर्धमानः शिवाय नः । यद्धर्मलाभाद्वर्षर्तु-मासपक्षदिनाः सुखाः ॥६॥ यस्य सेवार्चनध्यानै-र्ग्रहाश्चन्द्रार्यमादयः । ज्योतिर्युक्ता राशिबद्धा नृणां वश्या इव श्रिये ॥७॥ अम्भोधिर्बोधिवारीणां गौतमस्तमसां भिदे । गणाधिनायको जीयाद् गर्जगजमहाध्वनिः ॥८॥ जीयासुस्ते तपागच्छे श्रीपूज्या विजयप्रभाः । यैः कृपाधर्मविजयैः कृताऽर्हच्छासनोन्नतिः ॥९॥ ये पूर्वं लब्धजन्मानः पूज्या श्रीउदयप्रभाः ।। दैवज्ञां केशवाद्याश्च ते प्रसीदन्तु भूसुराः ॥१०॥ केशवा रसिकाग्रण्यः केशवास्ताकिकेश्वराः । केशवा ज्योतिषे साक्षाज्ज्योतिष्मन्तस्तमोहराः ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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