Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 21
________________ 16 २. ४ ६ चंदिइ सीतल जिन सिअंसो । वासुपूज्य जिणंद रे । नमो विमल अनंत धम्र्मो सांतिनाथ मुणिंद रे । कुंथु अर जिन मल्लि सुव्रत । नमो श्री नमि नेमि रे । पास जिनवर वीर जगगुरु । त्रिविध धुरि सुमरेमि रे ॥२॥ नमी कर्मक्षय सिद्धनइ । तिम नमी आगमसिद्धा । ते गौतम प्रमुखा मुनी विभु-कुंअर तप सिद्धा अति विसुद्धा सुद्ध बुद्धा नमी जिनना गणधरा । सिद्धि बुद्धि सुद्धि धारक प्रणमीइ मंगलकरा ॥ पंच वर आचारपालक अट्ठ गणिसंपदधरा । पुण्यदिनकर - उदयकारणि प्रणमीइ जगि गणिवरा ॥४॥ ढाल । सरसति अमृत वसइ मुखि वाणी || राग केदारो ॥ श्रीजिनवर - प्रवचनना वाचक | जे जगि वरति सुविहित वाचक । श्रुत वाचक दातारो । अढीयदीपना अनोपम मुनिवर । सकल जंतुना अनोपम हितकर । ए पद त्रिभुवन सारो । ते प्रणमीइ त्रिकालो ॥५॥ त्रू० | नाम गोअ सवण थविराणहो । महफल भणिअं गुणावहो । वंदणं नमणं पडिपुंछणं । बहुपातक- संतति- मोछणं ॥ ६ ॥ जइ वि सक्ति नही तपदाणनी । चरण सक्ति नही जस दाणनी । अनुसंधान - ३० Jain Education International दृढप्रहारी तपसिद्धा ||३|| त्रू० | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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