Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ 34 || ११|| १७१ एक खिण लव परमादमां न वसई तेरमइ, थानई विविध तप करइ चउदमइ । पनरमइ दि मुनि दान त्रोटक १७२ दान विविधा दिइ मुनिनई, वेयावच करइ सोलमई । सतरमई निज अपद मुनिनई समाधि दि अढारमई ॥१२॥ १७३ ध्यान अष्टादशइ ए गुण वीसइ श्रुत भगती करइ । वीसमइ शासनप्रभावक मुनिश तीर्थ पदं वरइ ||१३|| डुंगरीआनो । ढाल १७४ वीस थानक वर मंडलं नमी सूय परिवार रे । तीर्थंकर नाम तिहां बंधीउं निरतिचार आचार रे ॥१॥ वीस थानक० । १७५ विहार भूमी पवित्री करी करी अनशन मासि रे । केवली वज्रनाभांतिके निजालोचना भासि रे ॥२॥ वीस था० । १७६ पंच आचारमां जे हवा अतिचार प्रकाशि रे । पंच महाव्रत ऊचरी वशी उपशम वासि रे || ३ || वीस था० । १७७ मुनि खमावइ गुरु- साखिस्युं जगि जीवनी रासि रे । पंच थावर त्रस जे हण्या, मिच्छा - दुक्कड तासि रे || ४ || वीसथा० ॥ १७८ अशुभ परिणामई भमतां भवइ हण्या जीव जे चोर रे राजमद धनमद हेतुमां हण्या जीव जे ढोर रे ||५|| वीस था० ॥ १७९ छाग मृग वाघ जे हण्या हण्या सीट सीयाल रे । मूषक मांजार सेहला हण्या सर्प विकराल रे || ६ || वीस था० ॥ १८० गोण वृषा हय उंटडा जरखां रोजडां नउल रे । माछला वानर मांकडा महीष मारीआ कोल रे ||७|| वीस था० ॥ १८१ मस्तकछेद सूली दीया हण्या होममां यागि रे । अनुसंधान- ३० जीवता अगनिज बालीआ हण्या जीव सवादि रे ॥८॥ वीस था० ॥ १८२ जीवता खाल उखेलीआ हण्या वनपुर बांध रे । गाम नगर जे बालीआं हणाव्या पसू वाघ रे || ९ || वीस था० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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