Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ 64 अनुसंधान-३० (२) __'कन्धारान्वय' विषे पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी तरफथी प्रगट थती शोधपत्रिका 'श्रमण'ना जान्युआरी-मार्च २००३ना अंकमां डॉ. सागरमल जैननो 'धूलिया से प्राप्त शीतलनाथ की विशिष्ट प्रतिमा' नामे लेख प्रगट थयो छे, तेमां ते प्रतिमानी तसवीर, ते परनो लेख तथा ते विषे लेखकनां निरीक्षणो छे. प्रतिमा-लेखनी वाचना लेखके आ प्रमाणे उकेली छे : "सं. १२१६ फाल्गुन वदि १० गुरौ श्रीचन्द्रगच्छीय कन्धारान्वयग्ने रासलेनसुत आमदेवग्ने यसे प्रतिमा कारिता ।" लेखके आपेलां शोध-तारणो कांईक आवां छे : (१) कन्धारान्वय ए चन्द्रगच्छनी कोई शाखा हशे. (२) श्वेताम्बरोमां 'कन्धारान्वय'नो आ प्रथम प्राप्त उल्लेख छ; अने लेखमां कोई आचार्य, नाम नथी, एटले तेना प्रवर्तक आचार्य कोण होय ते जाणी शकाय तेम नथी. (३) प्रतिमा धूलिया (महाराष्ट्र)थी मळी छे. ते दक्षिण गुजरातथी नजीकनुं क्षेत्र छे. 'कन्धार' ए गुजरात-स्थित 'गन्धार' ज होई शके. गन्धार ए मध्ययुगमां जैनो- केन्द्र हतुं, अने त्यांना ओसवालो महाराष्ट्रमा वसेला छे. ते गन्धारना श्रावकोना वर्गनो ज संकेत 'कन्धारान्वय' शब्द द्वारा थाय छे. (४) लेखमां 'यसे' शब्द छे ते मराठी प्रभाव सूचवे छे; मराठी प्रयोग 'यांस'नुं आ प्राचीन रूप हशे, जेनो अर्थ 'यह' के 'इस' थाय. (५) प्रतिमानी तसवीर जोतां ते प्रतिमानी गोदमां शिवलिङ्ग होय तेवो देखाव थाय छे. मध्य युगमां शैवोए दक्षिण भारतमां शिवलिंग धारण करवानुं फरजियात बनाव्यु हतुं, तेने कारणे जिन-प्रतिमा पण एवी बनाववी पडी के तेनी गोदमां शिवलिङ्ग होवानुं लागे. आ छे डॉ. सागरमल जैनना लेखना मुख्य मुद्दा. हवे ते मुद्दा के निरीक्षणोनी यथार्थता विषे थोड़ोक विमर्श करीए. सौ प्रथम तो लेखके प्रतिमा-लेखनी जे वाचना लीधी छे, ते ज भूलभरेली छे. लेखगत प्रतिमानी तथा प्रतिमानी पलांठीनी तसवीरो एटली सुस्पष्ट छे के लेख अक्षरशः वांची ज शकाय छे. स्पष्ट वाचना आ प्रमाणे छे : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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