Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 85
________________ अनुसंधान - ३० एवं शुं संभवित नथी ? आवो शब्दप्रयोग लोकभाषानो 'प्रभाव' सूचवे छे एम कहेवामां हरकत नथी. 80 आ शब्दने जूनी गुजरातीनो गणीए तो 'सिद्धमातृका स्तव'नो रचनाकाळ अपभ्रंशोत्तर गुजरातीनो सहेजे ठरे. अने जो एने अपभ्रंश शब्द गणीए तो रचनाकाळनी पूर्वसीमा हजी पण प्राचीन समजवी पडे. किन्तु श्रीदिवाकरजीनो समय संस्कृतनी तथा प्राकृतनी मुख्यतानो छे. संस्कृतना चाहक एवा दिवाकरजीनी रंचनामां अपभ्रंश के अपभ्रंशोत्तर युगना शब्दने स्थान मळे एवी शक्यता नहिवत् ज गणाय. आथी 'सिद्धमातृकास्तव' ना कर्ता दिवाकर सिद्धसेन छे के अन्य कोई सिद्धसेन ? ए प्रश्न हजी विचारणा तो मागे ज छे. मुनि भुवनचंद्र — ( नोंध : सिद्धमातृकास्तवना प्रणेता दिवाकर - सिद्धसेन नथी, ए तो सिद्ध तथ्य होवानुं स्वीकारीने ज आपणे चालवुं जोईए. ए रचना १२मा - १३मा शतकमां थयेला आ. सिद्धसेनसूरिकृत होवानुं ज विशेषे संभवित गणाय. शी.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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