Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ 60 ४७३ रेणु लीआं ती खाड पडइ ते पूरीइरे । रत्नराशि करी धून ( थूभ) कीजइ रे । कीज रे चिताथानि जगदीसनई रे ॥८॥ ढाल । राग- धन्यासी ॥ ४७४ माई हमेथी तूं नीकी वपुरी माई जस घरि जोईइ । सुख मंगल वासो सुणवो तेणइ वासुपूज्य पुण्यप्रकाशो || १ || ४७५ वासवपूजित वासुपूज्य नमीजइ । कल्याणकदिन तस विधि रमीजइ ॥ २ ॥ ४७६ वासुपूज्य कल्याणकतिथि न तोडी । ४७७ जस घरि वूठी जोइ कल्याण कोडी । ४७८ जिणि नरि तेणइ न तेडी कल्याणक कोडी ||२|| माई० । कल्याणक तिथि तिणि कहे न तेडी ||३|| माई० । जस घरि जोइ राजमणी रजत होडी | जन्मकल्याणकतिथि काहे न तेडी ||४|| माई० । ४७९ वासुपूज्य पूजा शुभ ध्याननी कोडी । तेणि करी तस होइ मुगती चेडी ||५|| माई० | ढाल - राग- धन्यासी ४८० श्रीमदानंदविमलेदुं गुरु वंदीइ । पाटि तस श्रीविजयदानसूरो । तास पटि प्रशमनो कूपलो वंदिइ । हीरविजयो गुरु सुगुण पूरो ॥१॥ श्री भदा० । ४८१ सकलमुनि सुखकरो सकल संयम धरो दिनकरो श्री तपागच्छ केरो । अनुसंधान- ३० हीरविजय गुरुराजथी आज जगि, कोपि अधिको न दीसइ अनेरो ||२|| श्रीमदा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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