Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 64
________________ December-2004 ४६३ सहसवाहणि करी पालखी अपर मुनितणी दोइ रे । तिहां जिन साधु बइसारीया सुरा रास दिइ जोइ रे ||९|| भविका० । ४६४ देव गांधर्व गायंति तिहां सुरा तुर्य गायंति रे । धूप उषेवणां बहु करइ सुरा प्रभु पूजा करंति रे । ४६५ कुसुमनी वाल वरसइ सुरा प्रभु पूजा करंति रे । अनइं सुगंधी घणां चूरणां घनसार वरसंति रे ॥११॥ भाविका० । ढाल । राग मारूणी ॥ ४६६ शिव मंगल कल्याणकारणी पूजीइ रे । - डाढा राढा काजि जिननी रे रयणडाबिडा - वासिनी रे ॥१॥ ४६७ दाढा राढा काजिं जिननी । सकल इंद्र आराधीइ रे । आशातन-निवारि मेहूण रे मेहुण रे तिणि थानकि निवारीइ रे ॥२॥ ४६८ चिंताहरणी सामि चिता दिशि पूरवइ रे । बावनचंदन पूर पूरी रे पूरी रे । अगुरु कपूरइ मृगमदं रे ॥३॥ ४६९ अगनि दिइ तिहां अगनि कुमारा । देवता रे वायुकुमारो वायु सींचइ रे । सींचति रे अमृत जलई जलदेवता रे ॥४॥ ४७० जिनमुखि जिमणी ऊंची सोधर्मो लिइ रे । तिम डाबी चमरिंद लीजइ रे । वासुपूज्य दाढा जडी रे ॥५॥ - ४७१ जिन मुखि डाबी उंची ईशानो लिइ रे । हेठा लेई बलिंद दंता रे दंता रे इंद्र अनेरे लीजइ रे ॥६॥ 59 ४७२ कीकस जिननां देवे जो नवि मूंकीइ रे । रक्षा लिइ राजानक रेणूं रे रेणूं रे । अपर नरा लेई रमइ रे ||७|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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