Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 58
________________ December-2004 ३८६ पगिपाला किम चालस्यो रे पूत अमारा भूमि । 333 किमपरि भिख्यां मागस्यो रे किम सूस्यो उपर भूमि ॥ ६ ॥ पाछू वाली० ॥ 53 ३८७ विलविलती रांणी जया गई तिम वसुपूज्य नरंद । प्रभु निरागी वह गयो तिहां प्रणमइ रे भविजन वृंद ||७|| पाछू वाली० । ३८८ बीजइ दिनि त्रिभुवनपती रे एक महापुरि जाइ । पारणि काजि मधुकरी तिहां पुरजननई हरख न माइ ॥८॥ पाछू वाली० । Jain Education International ढाल - राग ॥ ३८९ लोगो वासुपूज्य जिन आयो सुर कल्याण कि जो जिन गायो । वासुपूज्य जिन आयो, लोगा वासुपूज्य । सो धन जीव गुणो तुम्ह लागो जस जिनदानह योगा । सो पामइ सुर शिव सुख भोगा रोग न शोग ति जोगा ॥१॥ लोगो वा० । ३९० प्रमुदित पुरजन घरि घरि पंथि दान कुलाहल चाल्यो । जिन - मुनि-दान हेतुइ जस हाथि तिणि जीवित आल्यो ॥ २॥ लोगो वा० । ३९१ सहसच्यार मुनि ऋषभदेवनां दाता तेणि निहाल्यो । पात्र दान दाता विणुं तेणई संयम आपणो टाल्यो || ३ || लोगो वा० । ३९२ ऋषभदेव-तनु- सुरतरु सिंच्यउ सिरि सेअंश कुमारि । पात्रदानफल जे जिन बोल्यां तस को मांन विचारि ||४|| लोगो वा० । ३९३ लोचन नाके विना नवि शोसि नरनारी मुख अंगो । दान विवेक विना नवि पामइ मनुज सभामा रंगो ||५|| लोगो वा० । ३९४ जिनशासन राख्युं तिणि पुरुषइ तिम मुनि दशविध पंथा । दान शील तप भाव उधरिआ दानि रह्या जिनग्रंथा || ६ || लोगो वा० । ३९५ छतइ योगई दान न दीधुं कीधुं कृपण निदानं । उदर भरयुं जिनभगति विणुं सो नर हुरित निधानं ॥७॥ लोगो वा० । ३९६ दान वात कोलाहल निसुणी राय सुनंदो धायो । मोजा चामरं छत्र त्यजीनिं प्रभु समीपि लघु आयो ||८|| लोगो वा० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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