Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 57
________________ 52 अनुसंधान-३० ३७४ सर्व विरति नीसरणीइं चउस्यइ शिवप्रासादि रे । चउसठि इंद्र तिहां मिलइ गाजति दुंदुभिनाद रे ॥३॥ वासुपूज्य० । ३७५ तीरथनीर अणावीआं जिनसुरतरु सिचिंत रे । सुरचीवर सुचिलेपनां जिनभूषण विरचंति रे ॥४॥ वासुपूज्य० । ३७७ माणिकली जिन-पालखी हरि निज अंस वहंति रे । तदनु सुरासुर दुंदुभि अंबरि नाद सहति रे ॥५॥ वासुपूज्य० । ३७७ चामर छत्र परंपरा आगलि थीय वहति रे ।। विविध कुसुम वर टोडरा धूपघटीय महंति रे ॥६॥ वासुपूज्य० । ३७८ जीव नंद जय जय कहइ जन आसीस देअति रे । षटशत मित्रसमो प्रभु शिवपुरि पंथ वहिति रे ॥७॥ वासुपूज्य० । ३७९ वनि आभरण ऊतारतां मातपिता ते रुदंति रे । पंचमुट्ठि लोच न करइ संयमरथ रोहंति रे ॥८॥ वासुपूज्य० । ३८० चरण महोत्सव करी गया नंदीसर सुरजात रे । प्रभु मनपर्यव-न्याननो अंतराय होइ पात रे ॥९॥ वासुपूज्य० । हूं बलीहारी यादवा-ए ढाल || ३८१ फागुणमासि अमावासि रे चउथ तपइ मुनि होइ । अनुमति मागइ विहारनी रे तव सुजना रे पुरजन होइ ॥१॥ पाळू वाली पूत जो मुझ तुझ विण रे खिण न सुहाइ । ३८२ सुत जोती री जया रोइ रे तिम वसुपूज्यो वि रोइ । प्रभु निरीह निरागीओ रे तस आपणो परही(न) कोई ॥२॥ पाळू वाली० । ३८३ पूता तूं अम्ह आंखडी रे हूंतो अम्ह आधार । निरधार मूंकी गयो रे कुण करस्यइ रे तुझ विणु सार ॥३॥ पाळू वाली० । ३८४ लालमणी पुरि आवयो रे पारण विहरण काजि । हणइ मसि पणि देखाइ रे देई दर्शन अम्ह दुख भाजि ॥४||पाळू वाली० । ३८५ तुझ मिलवा घरि आवता रे चउविह देवीदेव । तुझ पुण्यई हम पूजीआ रे मनिं धरजेरे अम्ह नइंहेव ॥५॥ पाळू वाली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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