Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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December-2004
२७४ तिहां घरि घरि मंगल कुसुम माला ।
जिनपूजा वधामणां दिइ विशाला ॥३॥ २७५ पिता वासुपूज्योभिधान च थापइ ।
जेणि नाम ली घरई जनो दुरित कापइ ॥४॥ २७६ सुरतरु परि श्रीजगदीश वाधइ ।
घरे नव नवि उत्सव विघन बाधइ ॥५॥ . २७७ जया सुरपतिइं पूजिउ पूत देखी ।
जाणे जनक-जननी हूई निनिमेषी ॥६।। २७८ जया पूतनइं हृदय ऊपरि जडावइ ।
सुत-चंदनई विविध गुणस्युं लडावइ ॥७॥ ढाल - देखण दइरी देखण दे ॥ राग - आसाउरी ॥ २७९ लालमणी रे लालमणी इंद्र मुकुटको लालमणी । तूं मुझ पूर्ति लालमणी जीत्यउ पद नखरुचइ । तेरी कंति हणी ॥१॥
लालमणी रे० । २८० पूति जीति लाली तनु जाई जाणेश लाल गुलाल तणी । परिमल पणि उस जीति लगायु वदन गुलाल ए गंधि घणी ॥२॥
लालमणी रे० । २८१ बाल-तरणी किम मित्र किओ तइं ।
तुझ तनु लाली बहुत गणी ॥ लालमणी रे० ॥३॥ २८२ कमल बंधु सोइ तुं जगबंधव ।
तेणई जग तापई अप्रीतिकरी ॥४॥ लालमणी रे० । २८३ गंधि हुआ जासूणां ऊणां ।
जेणि तुझ कंतीय नैव थुणी ॥५॥ २८४ चोलमजीठीय खंडखंडीइ ।
जेणइ तुझ कीरति नेव भणी ॥६॥ लालमणी रे ला० ।
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