Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 47
________________ 42 २६२ मेरु शिखर तुझ पूत जनम महोत्सव । करि निज दुरितां कापसिउरे ॥८॥ २६३ भय म धरिसि मनि मात बलतो तुझ सूत । लालमणी तुझ आपसिउं रे ||९|| २६४ पंच हूआ तिहां इंद्र छत्रादिक धरी । मेरु जमइ तीर्थजला रे ॥१०॥ २६५ सर्वोषधि गोशीर्ष बावन चंदनां । मेली ते सवि निर्मलांए ॥११॥ २६६ अठ्ठ सहस्र चउसठि कलसा जलभरी । चउसठि इंद्रइ न्हवरावीउ रे ॥ ११ ॥ २६७ विविध महोत्सव रंग नाटक सुर करी । रयण राशि उच्चारीओ रे ||१२|| २६८ पूजी प्रभूनई इंद्र अंग अलंकारी । प्रभु आगलि मणि- तंदुलइ ॥१३॥ २६९ मंगल आठ लिखंती अवगुण न वि पडइ । तिहां जिम बीबूं कांबइ ||१४|| २७० अमर गुण थुणंती प्रभु गुणगीतमां ए । गुंथी नंदीसर जईए ॥१५॥ ढाल २७१ यात्र करी सुर शृंगि प्रभु गुणगातीय । मुद माती निज पदि गईए || १६ || क्षत्रिय कुंड सोहामणुं रे ॥ राग-देशाख ॥ • २७२ सुरि घरि करी कोडि बत्रीस लेखइ । वर कनक मणि रजतनी राय देखइ ॥१॥ २७३ सुरि प्रभातिं दस दिवस चंपापुरीए । करी जनम महोत्सवइ सुरपुरी ||२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only अनुसंधान- ३० www.jainelibrary.org

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