Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ December-2004 45 २९४ प्रभो गलिं मंदार माला भरो प्रभु तंबोल गाला । . गल तलवर मुगताफल हारा जाला । मस्तकि मुकुट स्युं लटकति कानि कुंडल । प्रभु तनुभूषण झाकझमाला ॥४॥ २९५ नालिकेरां भरोरी डाला खजूरां केलेई जाला । धउ साजन तु रीझा बाल गोपाला पंच शबद नीसाण वाजइ । गगनि तस नाद गाजइ तिलक करो सब साजन भालिं ॥५॥ २९६ मेलीइ तिहां भूमीपाला दिइ धवलां देवी बाला । नाचति नाटक मेलति ताला देखति पुरजन कुमर ने साला । उत्सव छात्रह दीजति विहार विशाला ॥६॥ २९७ श्याम जईसा मेघमाला पंथि गाजइ हस्ती काला । चपला करइ निज सुंडिना चाला । आगलि ति जाइ तुरकी तोसार माला । पुर नृप कुमरा देवा तिफाला ॥७॥ २९८ प्रभो तुं सब कला शाला बालको प्रणितां ही बाला । इति निपुण ति मुगधा महीपाला । चलितासन इंद्रो आई साजण सभा बोलइ प्रभु पंडित । तुंही किसी नेसाला ॥८॥ ढाल - जाननो विवाह अवसर आवीओ रे । राग - मारुणी ॥ २९९ इंद्राणी सारिखीअ आणी वधू प्रभुनि काजि राजवत्सल तणी । पदमावती रे प्रभु परणो आज कि कुलवधू किम कहेई । धरणी विणु घर नवि होइ घरणी घर-सार करेई । घरणी तिणि लोक चरेई रे पूता कुलवधू इम कहेई ॥१॥ ३०० विविध मोटा मांडवा रे कनकमणिना थंभ ।। रामवती पकवान करस्युं भोजनना आरंभ तो । । तिहां नरनारी वृंदकि जोइ ज्योतिषी व्यंतर इंदा । सुरो धवल दिइ आनंद रे पूता ॥२॥ कुलवधू० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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