Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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December-2004
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२३० सुपननुं फल निसुणी राणी हरखइ हृदय भराणी । सुपन प्रमाण करीनि निज पदि जिन गुरु कथा कहि राणी ॥५॥
अनुपम० । २३१ नरपति सुपन पाठकि नइ तेडी पूछइ सुपन विचारो ।
अनुक्रमि सुपन पाठक आगलि राजा वदति उदारो ॥६॥ अनुपम० । ढाल-राग- धन्यासी । २३२ प्रथम एरावण दीठो नयणे अमीअ पइठो ।
. बीजइ वृषभ उदारो दीठो अति सुखकारो ॥१॥ २३३ त्रीजइ मृगपति देखइ दर्शन दुरित उवेखउ ।
चउथीथि लखमीअ सोहइ जिण दीठि जग मोहइ ।।२।। २३४ पंचमइ कुसुमनी माल छठुइ चंद्र विशाल ।
सातमइ तमहरु दिनकर आठमइ इंद्र धज जयकर ॥३॥ २३५ नवमइ कलस मनोहर दसमई पदम सरोवर ।
इग्यारमई सागर सुंदर बारमइ अमरनुं मंदिर ॥४॥ २३६ तेरमई मणिभर गगनि चउदमइ निरधूम अगनि ।
इति सुणी सुपनना पाट्ठी बोल्या निज मनि गाह्री ॥५॥ २३७ राजन तुझ सुत होस्यइ त्रिभुवन तस मुख जोस्यइ ।
नरपति अहव जिणिदो आव्यो ए कुलचंदो ॥६॥ २३८ राय दीइ बहुमान पाठकनइ बहु दान ।
पाठक कथन सुणावी घरणीइं घरि आवी ॥७॥ ढाल- सेहलनो ॥ २३९ धवल विमल सोहामणो रे पुण्यई विमला डोहला रे ।
जया सफला होइ धन्य जीव्युं जग मनोरथकां ।
न वि का नवि सफला होइ तो ॥१॥ २४० पुण्य करो जगि जीवन ए, पुण्यई ए पुण्यइ मंगल होइ तो ।
पुण्यइं धरी मणि डाबडाए ॥२॥
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