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________________ December-2004 39 २३० सुपननुं फल निसुणी राणी हरखइ हृदय भराणी । सुपन प्रमाण करीनि निज पदि जिन गुरु कथा कहि राणी ॥५॥ अनुपम० । २३१ नरपति सुपन पाठकि नइ तेडी पूछइ सुपन विचारो । अनुक्रमि सुपन पाठक आगलि राजा वदति उदारो ॥६॥ अनुपम० । ढाल-राग- धन्यासी । २३२ प्रथम एरावण दीठो नयणे अमीअ पइठो । . बीजइ वृषभ उदारो दीठो अति सुखकारो ॥१॥ २३३ त्रीजइ मृगपति देखइ दर्शन दुरित उवेखउ । चउथीथि लखमीअ सोहइ जिण दीठि जग मोहइ ।।२।। २३४ पंचमइ कुसुमनी माल छठुइ चंद्र विशाल । सातमइ तमहरु दिनकर आठमइ इंद्र धज जयकर ॥३॥ २३५ नवमइ कलस मनोहर दसमई पदम सरोवर । इग्यारमई सागर सुंदर बारमइ अमरनुं मंदिर ॥४॥ २३६ तेरमई मणिभर गगनि चउदमइ निरधूम अगनि । इति सुणी सुपनना पाट्ठी बोल्या निज मनि गाह्री ॥५॥ २३७ राजन तुझ सुत होस्यइ त्रिभुवन तस मुख जोस्यइ । नरपति अहव जिणिदो आव्यो ए कुलचंदो ॥६॥ २३८ राय दीइ बहुमान पाठकनइ बहु दान । पाठक कथन सुणावी घरणीइं घरि आवी ॥७॥ ढाल- सेहलनो ॥ २३९ धवल विमल सोहामणो रे पुण्यई विमला डोहला रे । जया सफला होइ धन्य जीव्युं जग मनोरथकां । न वि का नवि सफला होइ तो ॥१॥ २४० पुण्य करो जगि जीवन ए, पुण्यई ए पुण्यइ मंगल होइ तो । पुण्यइं धरी मणि डाबडाए ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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