Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसंधान-३० ३७ अरिहा देव नमो थुणि अरिहो अरिहा सिरि करि देवो ।
अरिहा मंगल शरण करावई करि अरिहाणं सेवो ॥२॥ राज० । निस्संगी गुरु सुविहित लिंगी उपशम संयम रंगी ।
तस वंदण उपदेस सुणीनई तुं भव समकित संगी ॥३॥ राज० । ३९ संगी देव तजे तुं राजन गुरुपणि तजे संयोगी । गुरु नमि संयम योगी धर्म धरे चित्त जिनपति भाखित ।
इम समकितहो भोगी ॥४|| राजन० । ४० मिथ्यामतिउ परं तन-रोगो मिथ्यामति चित-रोगो ।
मिथ्यामति अति-अंधारुं मिथ्यामति विष सारुं ॥५॥ राजन० । तिण अवतार सफल जगि कीनो जिणइं तत्वई मति वासी । लक्षण दूषण भूषण जाणी विरति लीइ गुणरासी ॥६॥ राज० । मिथ्यामति असती जन संगति पापी पोष न कीजइ ।
पुण्यखेत धन पोषी राजन दया अनुकंपा कीजइ ॥७॥ राज० । ४३ इधणि आगि न होवति पूरो जलधि नदी नइ लेखइ ।
तिम सुखि भोग जीवन ही पूरो निजहित करि गुरु शीखइ ॥८॥ राज० । ढाल - नेमि जिनेसर राजीओ ।। राग - रामगिरि ४४ तपनो राय संवेगीउ निज चितनइं कह चेत रे ।
गज तुझ पुण्यइ रीझवी मिलिउ गुरु हित हेत रे । आव्यउ आरय खेतर शुभनइं एह ज खेत रे । ऊघाडो चित नेत रे करि तुं मुगति संकेत रे आलिं नर भव हारीओ ।
हुं अविवेकी राय रे । ॥१॥ ४५ राजई रीद्धइं ही मोहीओ मोहइं मुझ दिन जाइं रे । रवि शशि जीवित खाइ रे पुंठि जरा-गज थाइ रे ॥२॥
___ तपनो राय संवेगीओ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86