Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-३०
११७ इक दिन तस गजनइं चढ्योजी अवि दुर्धर तनु ताव ।
राय सुणी गज पूछिओजी कुण तुझ दुखनो भाव ॥७॥ सहोदर० । ११८ औषध विविधा वैधनांजी कीजि जीवनकाजि ।
गज निज मरणं जाणतोजी कीधुं अनशन काज ॥८॥ सहोदर० । ११९ अक्षर लखी जणाविउजी नृप म करिसि मुझ मोह ।
पुर बाहिर जाइ संठिओजी तिहां बहु अनशन सोह ॥९॥ सहोदर० । ढाल - आवो आवो सिर्जेजइ जईए ॥ १२० अनशन इम आराधीइ कहइ मुझ खामण तेह रे । जे मई त्रिविध विणासिआ त्रसनइं थावर जेह रे ॥१॥
___अनशन इम आराधीइ । १२१ पंचाचार विराधीया । मैं भवि भमतां जेह रे ।
मिच्छा दुक्कड ते हज्यो । शरण जिनादिक तेह रे ॥२॥ अनशन० । १२२ पाप अढार जे मई कऱ्या भवि भवि भमतां जीव रे ।
जीव हण्या त्रस थावरा करता अति दुख राव रे ॥३॥ अनशन० । १२३ जगि त्रस थावर नई शस्त्राधिकरणुं देह रे ।।
मुझ भवि भमतां जेहवं मइ वोसिरिउं तेह रे ॥४॥ अनशन० ॥ १२४ मुझ त्रस थावर जीव तुं धर्मोपगरण देह रे ।
भवि भमतां जगि जेहतुं हुं अनुमोदु तेह रे ॥५॥ अनशन० ॥ १२५ अनशन पाली गज गयो सौधरमइं सुर लोगिं रे ।
तिहां जिनघर जिन पूजतां हरख रमइ सुर लोग रे ॥६॥ अनशन० ॥ १२६ राजा गज-दुखि मोहीओ रुदन करइ अति-शोग रे ।।
गज बंधव मुझ विणुं गयो वारइ पुरजन-लोग रे ॥७॥ अनशन० ॥ १२७ दिइ दरिसन मुझ आपणो तुझ विण मुझ न समाधि रे ।
___ गज-देवो अवधिं सुणी टालइ नृप असमाधि रे ॥८॥ अनशन० ॥
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