Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ 24 अनुसंधान-३० ७२ वामन कहइ सुणो बंधवा छते धर्मनइं योग रे । जे नरा साधुनई नवि नमइ ग्रह्या कुमती निरोगी रे । पुण्यवंता० । ७३ संयमी साधुनि दर्शन जस ऊपजि तोष रे । निज घरि शक्ति भगति करी करइ पात्रनु पोष रे ॥६॥ पुण्यवंता० । ७४ इम कही वामनि वंदिओ पड्यो वामन पूठि रे । मुनि परसेदनो बिंदुओ जोइओ चुअज ठिदे ॥७॥ (?) कंटक मुनितणइं लोचनइं कही आवीओ पइठ रे । नयणथी पणि रे खटकइ घणुं एतो वामण दीठ रे ॥८॥ ७६ बंधवा कंटको काढीइ निज पास स्युं एह रे । _हुं अटारो कृतांतई करयो अति वामणो देह रे ॥९॥ ७७ राम कहइ हुं पशु परि थई चडी तुं मुझ पूठि रे । कंटको काढी तुं वामणा निज पुण्य न ऊठि रे ॥१०॥ ७८ बाहिं संग्रामि अवलंबीउ चडी रामनी पूंठि रे ।। वामणि कंटक तु काढीओ हवि सर्व मनि तुठि रे ||११|| वामणि कंटको काढतां मुनि तनू मलै दुरगंधि रे । व्याकुलि अंग संकोचीउ पड्यो अशुभ शुभ बंध रे ॥१२॥ पुण्यवंता जगि ते नरा ॥ ढाल-राग- आसाउरी ॥ जिनवर स्युं मेरु चित लीनो-ए ढाल ॥ ८० मुनि निकंटक लोचन करी बाल्यो जातिगारव इम चडीउ रे । मुझ खत्री विणुं ए कुण काढति बंध शुभाशुभ पडीओ रे । वेयावचादिक शुभ फल दायक सुकृत करी मद तजीइ रे । अतिकढिआ साकर रस सरीखो । शुभ अनुभोगो भजीइ रे ॥१॥ मुनिनि कं. । ८१ कंटकस्युं आपण उद्धरीओ भवसमुद्रथी जीवो रे । इति सुमित्र प्रति वामण बोल्यो एह पुण्य चिरंजीवो रे ॥२॥ मुनि० । ७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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