Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 20
________________ December-2004 15 श्रीसकलचन्द्रवाचककृत श्री वासुपूज्य जिन पुण्य प्रकाश-स्तवन सं. डो. शोभना आर. शाह प्रस्तुत प्रत १०.५ से.मी. लांबी अने २४.५ से.मी. पहोळी छे. उपर नीचे बन्ने तरफ हांसियो आपवामां आव्यो छे. दरेक पानानी अंदर १२ थी १३ लीटीओ छे. बन्ने बाजु लखेली प्रत छे. पृष्ठ क्रमांक जमणी बाजुओ लखेला छे. ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरमांथी प्रत क्रमांक ८०६४ना आधारे आ प्रत तैयार करी छे. हांसियामां खूटता शब्दो उमेरेला छे. प्रस्तुत प्रतमां कुल २० पृष्ठ छे. प्रतनी भाषा-जूनी गुजराती छे. तेनो लेख समय संवत् १७३८ वर्षे वैशाखवद एकम अने शुक्रवार छे. तेना लेखक वन्दावन अनहिल्लपत्तनपुरना चातुर्वेदी मोढ ज्ञातिना छे. आ प्रतमां कुल ५९ ढाळ छे. प्रत्येक ढाळनी साथे तेना ढाळ तथा राग आपवामां आवेला छे. ढाळ देश्य भाषामां छे. कुल कडी ४८५ छे. कर्तानो परिचय : आ स्तवनना कर्ता वाचक सकलचन्द्र गणि छे. स्तवननी छेवटनी कडीमां तेओ पोताने 'सकलमुनि' तरीके ओळखावे छे. तपागच्छमां श्रीआनन्दविमलसूरिनी पाटे विजयदानसूरि अने तेमनी पाटे हीरविजयसूरि थया, तेमना शासनमां पोते आ रचना कर्यानुं छेल्ली ढाळमां निर्देश छे. वंबावती (खंभात) नगरमां थंभण पार्श्वनाथना सांनिध्यमां वि.सं. १६२८ (वसु श्रवण हृदयांबुजे जीवं सूरो)मां आ स्तवन रच्युं छे. कर्तानो सत्ताकाल १६मा शतकनो पश्चार्ध तथा सत्तरना शतकनो पूर्वभाग हतो. . श्रीसकलचन्द्रवाचककृत श्री वासुपूज्य जिन पुण्यप्रकाश ॥ ॐ ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ राग गोडी ॥ ऋषभ अजित संभव जिनो । अभिनंदन सुमतीशो । पदमप्रभ सुपासोरिहो । चंद्रप्रभ सुविधीशो ॥१॥ त्रू० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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