Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ December-2004 श्रीपूज्य पधार्या प्रेमसुं रे लाल । श्री जयचन्द सूरिन्द । सु० । साह रांणौ वयरागीया रे लाल । पुत्र पुत्र सु आणंद ॥ सु० ६ ॥ जोधपुर नगर सुहामणौ रे लाल । दिक्षा महोछव सार । सु० । संघ जीमावी हरखसुं रे लाल । विलसी धन विस्तार ॥ सु० ७ ॥ पंच महाव्रत पालता रे लाल । चारित्र निरतिचार | सु० । रांणै मुनि सुरगति लही रे लाल । सतरसईकै सार ॥ सु० ८ ॥ श्री पदमसीह मुनि परगडा रे लाल । श्री जयचंदसूरि सीस । सु० । सोहै लखमां साधवी रे लाल । शिख शिखणी सुं जगीस || सु० ९ ॥ महिमंडल विचरता रे लाल । तारण तरण जिहाज । सु० । सुमति गुपति व्रतधर सदा रे लाल । साधु गुणे सिरताज ॥ सु० १० ॥ नयर जोधाणै आवीया रे लाल । जांणी चरम चोमास । सु० । सतरतयाल संवछरै रे लाल । श्रीमुख अणसण जा ॥ सु० ११ ॥ पोस दिसम जगिसार । सु० । अनुक्रमि भवनौ पार || सु० १२॥ अढी दिवस पाली करी रे लाल सुरगति सुर सुह भोगवै रे लाल । सोल वरस गृहवास मै रे लाल । रिख पद वरस पैताल । सु० । बार वरस वाचक पदै रे लाल । सर्वायु तिहोत्तर पाल ॥ सु० १३ ॥ 13 $ धन ओसवंश अतिदीपतौ रे लाल । धन तेलहरा गोत । सु० । मात पिता धन जनमीया रे लाल । धन सुगुरु जगि जोत ॥ सु० १४ ॥ चरण कमल सेवक भणै रे लाल । प्रणमुं बे कर जोडि । सु० । करमसीह कृपा करी रे लाल । पूरौ वंछित कोडी | सु० १५ ॥ इति श्रीप्रमोदचंद्रवाचकभास सम्पूर्णः सं १७४५ वर्षे लिखतं पं. श्री आसकरण जी । कठिन शब्दों के अर्थ : वाचकवरु राणा रयणादे Jain Education International वाचक-श्रेष्ठ प्रमोदचन्द्र के पिता का नाम प्रमोदचन्द्र की माता का नाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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