Book Title: Anusandhan 2004 12 SrNo 30
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 17
________________ 12 अनुसंधान-३० ने यह भास लिखा है। नागपुरीय तपागच्छ पट्टावली के अनुसार भगवान् महावीर से ६२वें पट्टधर श्रीजयचन्द्रसूरि हुए । यह बीकानेर निवासी ओसवाल जेतसिंह और जेतलदे के पुत्र थे । वि.सं. १६७४ में राजनगर में इन्हें आचार्यपद मिला था और वि.सं. १६९९ आषाढ़ सुदि पूनम को जयचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हुआ था । इस पट्टावली के अनुसार यह निश्चित है कि वाचक प्रमोदचन्द्र ऋषि नागपुरीय तपागच्छ/पार्श्वचन्द्रगच्छीय थे और श्रीजयचन्द्रसूरि के शिष्य थे । श्रीजयचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीपद्मचन्द्रसूरि (आचार्य पद १६९९ और स्वर्गवास १७४४) ने ऋषि पदमसीह को सम्वत् १७३१ में आचार्य पद प्रदान किया था । वाचक प्रमोदचन्द्र की कोई रचना प्राप्त नहीं है। इनके सम्बन्ध में और कोई जानकारी प्राप्त हो तो पार्श्वचन्द्रगच्छीय मुनिराजों से मेरा अनुरोध है कि वे उसे प्रकाशित करने का कष्ट करें । इस भास के दूसरी और मिष्टान्नप्रिय जोध नामक यति ने नागौर की प्रसिद्ध मिठाई पैडा का गीत १५ पद्यों में लिखा है । ॥ ढाल-अलवेला री ॥ श्री जिन पय प्रणमी करी रे लाल । गाइस गुरु गुणसार, सुखकारी रे । श्री प्रमोदचंद वाचकवरु रे लाल । नाम थकी निसतार ॥ सु० १ ॥ श्री प्रमोदचंद पय प्रणमीयइ रे लाल । नाम थकी निसतार । सु० । सुख संपति सहितै मिलै रे लाल । दरसण दुरित पुलाई ॥ सु० २ ॥ मरुधर देस सुहामणौ रे लाल । रोहिठ नगर विख्यात । सु० । साह राणा कुल चंदलौ रे लाल । रयणादे जसु मात ॥ सु० ३॥ सौलैसै सितरै समै रे लाल । जनम दिवस सुद्ध मास । सु० । मात पिता हरखै घणुं रे लाल । उछव करै उल्हास ॥ सु० ४ ॥ बीया चंद तणी परै रे लाल । वधता बहु गुणवंत । सु० ।। पदमसीह मुख पेखता रे लाल । सजन सहु हरखंत ॥ सु० ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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