Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ August-2004 (२) (पद्य २१) जेनी वृद्धि विषमां छे, जेनी जन्मस्थिति विषनी साथे छे, जेनी सत्ता विषगृहमां छे, जे विषधरोथी वीटळायेलुं छे अने जे वळी नामथी अमृत (तरीके) थयुं (कहेवायुं) तेवा स्वर्गना भोजनरूप (अमृत)थी आ यतिने शुं ? एवं विचारीने श्रेयांसे रसथी आपेलो इक्षुरस जेमणे धारण कर्यो (स्वीकार्यो) ते तमारा कल्याण माटे हो । आवी अनेक कल्पनाओ तथा उत्प्रेक्षाओ कविए आ शतकमां भरी दीधी छे जेनो रसास्वाद तो वांचवाथी ज माणी शकाशे । रचनास्थळ-संवत् आ कृतिनी रचना सं. १६५६मा स्तम्भतीर्थ (खंभात)मां थई छे, अने तेनुं संशोधन पं. श्रीलाभविजयगणिए करेलुं छे । प्रतिपरिचय : आ. श्री योगतिलकसूरिजी द्वारा प्राप्त थयेल, राधनपुरना सागरगच्छ जैन पेढीना भंडारनी डा.६/६३ क्रमांकनी हस्तप्रतनी झेरोक्ष नकल परथी आ कृतिनुं सम्पादन करवामां आव्युं छे । प्रतिनुं लेखन अकबरपुर (खंभात)मां थयेलुं छे । आ प्रति मूळ प्रतिनो प्रथमादर्श होय तेवू प्रान्ते लखेल पुष्पिकाथी जणाय छे । अने जो ते साचुं होय तो आश्चर्य ए वातनुं छे के आ प्रतिना लेखनमां थोडी अशुद्धिओ तो रहीज छे, साथे केटलांक अक्षरो । पदो । पंक्तिओ पण छूटी गयां छे ! ते सिवाय पण झेरोक्षमां केटलेक स्थळे अक्षरोनी छाप बराबर न उठी होवाथी ते उकेलवामां मुश्केली थई छे । ते छतां केटलांक स्थानो / अशुद्धिओ पू.गुरुभगवंतनी सहायथी उकेल्यां छे, परंतु थोडां स्थानो अणउकल्यां रही गया छे, ते सुज्ञ वाचकोने उकले तो जणाववा विनंति । प्रतिना अक्षर सुन्दर छे, प्रत्येक पृष्ठमां प्राय: १३ पंक्ति छे अने छेल्ला (८/२)पृष्ठमां १२ पंक्तिओ छे । कृतिनुं ग्रन्थाग्र २५० श्लोक प्रमाण छ । ऋषभशतकम् ॥६०॥ , नमः सिद्धम् ॥ स्वस्ति श्रीमति यत्र मित्रमहसि प्राप्ते दृशोरध्वनि, स्निग्धाब्जैररिकैरवैश्च युगपल्लेभे प्रमोदोद्गमः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 110