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August-2004
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एमना काळनी कथानी परम्परामांथी दूहो लीधो होय, एवो संभव न होय ? कोई पण पद्यकार कोई कथाने कृतिनुं रूप आपे छे त्यारे ए कथाना परम्परागत संलग्नअंग जेवा दुहाओने पण पोतानी कथारचनामां स्थान आपे छे. 'नन्दबत्रीसी'नी कोई पण रचनामां 'पडपासा पोबार'नो बधा ज उपयोग करे छे. मारु ढोलानी कथाओना, कबीरवाणीना अभ्यासी अने पेरीसनी युनिवर्सिटीमां भारतीय सन्तवाणीना अभ्यासनो पायो दृढ करनार अने फ्रान्कवा मालिझों जेवी शिष्यानी परम्परा धरावनार स्व. डॉ. वोदविले मारुढोलानो अभ्यास करीने, एनी विविध रचनाओना आधारे, ते कथाना परम्परागत मूळभूत दूहाओ क्या, केटला तेना पाठनो निर्णय कर्यो छे. एमां संभवतः आ दुहो होई शके. जैन स्रोतमां कुशळलाभे पण मारु-ढोलानी कथा दुहा-चोपाईमां बांधी छे. अमां पण परम्परागत, कथाना मूळ अंगरूप दुहाओ छे. आ बधुं जाण्या के चकास्या वगर ज ए दुहो चारण कविनो ज छे अने तेनो उपयोग करवा छतां राजाने खुश राखवा एनो नामोल्लेख टाळ्यो : आवां अनुमान अने आरोपमां संशोधन-स्वाध्यायनो रस-अधिकार केटलो ? ते सवाल अवश्य उद्भवे छे.
__ हसु याज्ञिक
३, शीतल प्लाझा,
वस्त्रापुर, अमदावाद-५४
(२) नोंध :
श्रीनरोत्तम पलाणना निरीक्षण परत्वे केटलुक ज्ञातव्य :
१. हेमचन्द्राचार्य द्वारा उद्धृत दुहा लुणपाल महेडुना होय के गमे तेना होय, पण अपभ्रंश (प्राकृत) व्याकरणमां उदाहरण लेखे तेनुं उद्धरण टांकवानुं होय त्यारे त्यां तेना प्रणेता नाम लखवानुं व्याकरणकार माटे जराय आवश्यक नथी. आचार्ये ते व्याकरणमां आपेलां बहुसंख्य उदाहरणो अन्यान्य अनेक रचनाओमांथी लीधां छे, अने तेमां एकमां पण तेमणे तेना रचनार- के मूळ ग्रन्थ, नाम आपेल नथी. डॉ. भायाणीए आवां अनेक उदाहरणोनां मूळ स्थानो शोधी आप्यां ज छे. वस्तुतः मध्यकालमां आवी, आजना सन्दर्भप्रचुर शोधपत्रोमा प्रवर्ते छे तेवी प्रथा ज न हती. एटले आचार्ये दुहाना रचनार नाम
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