Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 107
________________ अनुसंधान- २९ अनु. मां प्रगट थयेल वाचनाने सुधारवानो मोको सम्पा. श्री शीलचन्द्रसूरिजीए झडपी लीधो छे. आ शुद्धिपत्रक जोवाथी हस्तप्रतोना लिपिकारो - लहियाओ द्वारा मूल ग्रन्थमां केवी केवी अशुद्धिओ प्रवेशी शके छे. तेनो सरस ख्याल नूतन अभ्यासीओने मळशे. 102 ग्रन्थने बराबर समजवो ए सम्पादकनी प्रथम फरज छे अने आवो तार्किक ग्रन्थ समजवो कठिन होय छे ए पण आ सम्पादनना माध्यमथी जाणी शकाय छे. 'चाणाक्य' विशे दक्षिणमां रचायेला एक ग्रन्थमां जे कथा मळे छे तेना उपर श्री शीलचन्द्रसूरिनी एक अभ्यासनोंध आ अंकमां छे. 'चालाक' शब्दनुं मूळ 'चाणाक्य = चाणाक्ष मां होय ए आ लेखमांथी जाणवा मळे छे. कथासाहित्यमां कल्पना अने तथ्योनुं केतुं मिश्रण थई जतुं होय छे, तेमज तथ्यो पण केटली हदे अस्तव्यस्त थता होय छे तेनुं सरस निदर्शन आ कथामां जोई शकाय छे. Jain Education International जैन देरासर ३७०४३५ जि. कच्छ, गुजरात नानी खाखर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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