Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 104
________________ विहंगावलोकन (अनुसन्धान २७नुं) ___ मुनि भुवनचन्द्र अनु. २७ मां संस्कृत अने संस्कृतेतर प्राचीन भाषाओनी वानगी प्रस्तुत करती एक रसिक कृति 'षड्भाषामयं पत्रम्' प्रगट थई छे. 'बुद्धिमानोनो समय काव्यशास्त्रविनोद वडे पसार थाय छे अने मूर्खाओनो समय व्यसन, ऊंघ अने कलहमां जाय छे'- एम एक सुभाषित कहे छे. पंडित वर्ग अने उच्च शिक्षित शासकीय वर्गमां केवो विद्याविनोद थया करतो हतो तेनो नमूनो आ कृतिमां छे. पृ. ९ पर श्लोक १८मां 'भग्नं' छपायुं छे त्यां 'भग्गं' एवं प्राकृत रूप होवू घटे. अभिनय माटेनी सूचनानां वाक्यो कौंसमां मूकवानी पद्धति सम्पादके स्वीकारी नथी, पण ते वाचक माटे स्वीकारवा योग्य छे. सम्पादक विद्वद्वर्य म. विनयसागरजीए कृतिनी भूमिकामां कृतिसम्बद्ध तथ्यो जे रीते आप्या छे ते नूतन संशोधको माटे दिग्दर्शक बने एवं छे. 'कल्प व्याख्यान मांडणी'मां कल्पसूत्रना व्याख्यान समये मुनिवरो केवी भूमिका रचता तेनी झलक मळे छे. प्रस्तुत मांडणीमां सर्व गच्छोना प्रभावक पूर्वाचार्योनुं नामस्मरण थयुं छे ते प्रेरणादायी छे. उच्च साहित्यिक स्पर्शवाळी रजूआत आमां छे, ते ए वखतना श्रोताओनी तेवा प्रकारनी सज्जताने पण व्यंजित करे छे. आमां त्रिपदीने 'अंगत्रय' एवं नाम अपायेखें छे जे एक नवीन वात छे. पृ. २३ पर 'सुमतिसूरिए ४ शाखा अने पांचमा प्रधाननी स्थापना करी' एम छे. आ 'प्रधान' एटले शुं तेनो फोड सम्पादके पाड्यो नथी. पृ. २० पर त्रण अशुद्ध श्लोको छे ते तत्त्वार्थ आद्यकारिकामांथी लेवाया छे. पृ. २१ पर त्रीजी पंक्तिमां 'नावा ग्रामगुणाः' छे त्यां 'नो वा ग्रावगुणाः' एवो पाठ समीचीन जणाय छे. 'लाभोदय रास' जेवी महत्त्वनी कृतिनी पुनः संशोधित वाचना आ अंकमां अपाइ छे. एक विशिष्ट कृतिनुं अनुसन्धानकार्य आगळ चाले छे. वि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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