Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 103
________________ अनुसंधान - २९ न लीधुं होय तो तेमां 'असूया' होय अथवा 'राजानी खुशामत करवानी वृत्ति' होय एवी कल्पना करवामां आपणी मनोवृत्तिनुं हेत्वारोपण आचार्यमां थतुं जणाय छे, जे शिष्टतानी मर्यादाने अतिक्रमे छे. 98 २. सिद्धराजने जूनागढना राणा साथे शत्रुता होय तेटलामात्रथी ते त्यांना विद्वान् कविना नामोल्लेख परत्वे पण सूग धरावतो होय अने तेनी सूगने कारणे हेमाचार्य पण ते नाम लेवानुं टाळे, आ नरी हास्यास्पद अने मनःकल्पित कल्पनामात्र छे. एवं ज होत तो शत्रुराजना कविना मनाय छे ते दुहा ज आचार्ये लीधा न होत ! आचार्यने तथा राजाने आटला बधा क्षुद्र धारी लेवा, ते अत्यन्त गेरवाजबी छे ज; इतिहासना भीतरी प्रवाहोनी अल्पज्ञता पण तेथी सूचवाय ज. ३. पाटणना स्थापकनुं नाम न लीधुं के चावडा विशे तेओ मौन छे ते वातने आचार्यनी खुशामतिया वृत्ति प्रवृत्तिसूचक मानवी ए तो नर्यो अन्याय छे. आचार्ये स्वीकारेली मर्यादा ए छे के तेओ सोलंकीवंशने ज वर्णववा चाहे छे, अने तेमां पण व्याकरणने सांकळीने ज वर्णन आलेखवा मागे छे. तेमने मन गुजरातनुं पोतीकुं सर्वांगसम्पन्न व्याकरण रचवुं ए ज केन्द्रवर्ती बाबत छे; राजानुं के तेना वंश आदिनुं वर्णन तो आनुषंगिक बाबतमात्र छे. आ तथ्यनो ऊंडाणपूर्वक विचार करवामां आवे तो घणा सवालो शमी शके. ४. चारणी साहित्यनुं मूल्यांकन, उपादेयता, उपयोगिता तथा इतिहासमां तेनी अगत्य - आ बधुं स्वीकारवुं के न स्वीकारवुं ते तो विद्वानोनो विषय गणाय. परन्तु तेनो पक्ष रजू करवा जतां, तद्दन अनावश्यक रीते, हेमचन्द्राचार्य वगेरेने ऊतारी पाडती कल्पनाओ के संकेतो आपवां, ते तो केवळ अनुचित चेष्टा ज बनी रहे छे. ५. वस्तुतः तो चारणी साहित्यना पक्षधरोए गौरव अनुभववुं जोईए के एक जबरदस्त जैन साहित्यकारे पण, पोते नवा दुहा रचवानुं सामर्थ्य धरावता होवा छतां, कोई चारण कविनी रचनाओ (जो खरेखर तेम होय तो), पोताना मौलिक ग्रन्थमां गुंथी अने तेने अमर बनावी, तेनी प्रतिष्ठा वधारी. ओम पण तेओ कही शके के हेमाचार्ये जो चारणी रचनाने आटली इज्जत बक्षी, तो आजे ए ज कुळनी रचनाओ साथे वेरोआंतरो केम ? अलबत्त आ माटे विधेयात्मक दृष्टि होय ए आवश्यक गणाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only शी. www.jainelibrary.org

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