Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ August-2004 पन्नर कलाना पर परमेश्वर तेहनी परज पराझी सोल कलाना निज परमेश्वर परज अनन्तमे बाजी ||१०|| तीर्थधणी जे अनंता सिधा तेहनो तेह परीवार अनादितणा जे सिध अनंता निजनिज ते निरधार । ए परिवार अनंतो सीधां सोल कलानो सरवे सत्तर कलानो स्वामी वीचें अगम निगम अभेवें ॥११॥ ए सिधसासण अलख अपारें ज्योतिलिंग मझार अवगाह अनंतो ज्योति झलामलमाहें नगर वसतारे । त्रीवली त्रीगढ तेज अनंतो सिध अनंतामांहि नवरंगो केवलनयर विराजे केवल तेथ अगाहिं ॥ १२ ॥ अलखधणी गतवरला बुझें पारनगर वसतार केवलज्ञांन कलामांहे देखें एक अनन्त अपार । लोकालोक अलोक अलोकां बुझें पार पच्छाणं मुनीचन्द्रनाथ धणी निज पाशि पारसनाथ वखाणं ||१३|| इति श्री सोडसकला श्रीसीधज्ञानेशक्तेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते आदिअनादिकसिधपुरनगर श्रीराजलीला सोडसमीकला। इति सोलकला संपूर्णः । ज्ञानवाणी समाप्तः ॥ अथ श्री आगमविद्या केवलज्ञांनपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासिके सुध भौमीनीवास तथा आगमसारवांणी माहातमकथन हेतु ज्ञांनवांणी ॥ चाल: पारसनाथ धणी परमेश्वर सिध अनादिक राजा मांहिं आदिक पार सिधा नाथ अनंत प्राजा । इण चोवीसें पारसनाथ तीर्थधणी युगराजे पारससासणमां जेह सिझें तेह धणी तेह छाजें ॥१॥ 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110