Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 76
________________ August-2004 अनूप रूप देखते जिणंद चंद पासए पदारविंद वंदतें कुपाप व्याप नास दरिद्द पूर चूरकें त्रपुर मोरि आसओ अनाथ नाथ देइ हाथ करि सनाथ दास अ ||४२ || कमठ्ठ हठ्ठ गंजनो कुकर्म मर्म भंजनो जगज्जनातिरंजनो मद द्रुम प्रभंजनो कुमत्ति मत्ति मंजनो, नयन्न युग्म खंजनो जगत्र अगजनो सो जयो पार्श्व निरंजनो ||४३|| गाहा पास एह निज दासनी, अवधारो सरदास नय देखाडि दरिस, पूरो पूरण आस ॥४४॥ चकवा चाहे चित्तस्युं, दिनकर दरिसण देव चतुर चकोरी चंद जिम, हुं चाहुं नितमेव ॥ ४५ ॥ निस भरी सूतां नींदमें, दीवूं दरिसण आज परतिख देखाडी दरिस, सफल करो मुज काज ॥४६॥ तुम्ह दरिसण सुखसंपदा, तुम्ह दरिसण नवनिधि तुम्ह दरिसणथी पामि, सकल मनोरथ सिद्धि ॥४७॥ छंद चालि अंतरीक प्रभु अंतरयामि, दीजे दरिसण शिवगति पामी गुण केता कहि तुम्हं स्वामि कहतां सरसती पार न पामी ॥४८॥ कीधो छंद मंद मति सार, हित करि चितमां धर्यो वारू बालक जदवातदवा बोले, मातानें मनि अमृत तोले ॥ ४९ ॥ किधुं कवित चितने उल्लासें, सांभलतां सवि आपद नासे संपद सघली आवे पासे, भावविजय भगतें इम भासे ॥५०॥ Jain Education International 71 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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