Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 77
________________ 72 अनुसंधान-२९ छंद छप्पय कियो छंद आनंद, वृंद मनमांहि आणी सांभलतां सुखकंद, चंद जिम सीतल वाणी श्री विजयदेव गुरुराज आज तस गणधर गाजे श्री विजयप्रभसूरि नाम काम समरूप विराजे गणधर दोय प्रणमी करी, थुण्यो पास असरणसरण भावविजय वाचक भणे, जयो देव जय जयकरण ॥५१॥ इतिश्री अंतरीक पार्श्वनाथ छंद सदानंद संपूर्णम् संवत् १७५० सा वर्षे मार्गसिर वदि १४ शुभवासरे लिखितोयं पं. भाग्यविजयगणिना सकलमुनिमंडलीमुख्यमुनिश्रीप्रेमविजयवाचनाय श्रीपत्तनमहानगरे ॥ अघरा शब्दोना अर्थ कडी : १ पुरिसादाणी =पुरुषोमां प्रधान, प्रसिद्ध, आप्त पुरुष, आदरणीय खांणि = भंडार कडी : २ धर = पृथ्वी कडी : ६ वयरागर = हीरो, रत्नविशेष, हीरानी खाण कडी : ७ सायक = बाण कडी : ८ सुरमहिला = देवी, बहुला = धणी कडी : ९ अवदात = वृत्तान्त, चरित्र, गुण, यश, यशस्वी वृत्तांत कडी : ११ जिके = (तेना), जे कडी : १२ चामीकर = सुंदर कडी : १३ प्रवहण = वहाण , भज्जे - भांगे कडी : १४ झडफे = ? दंदोल = संशय । मूंझवण / तोफान । धांधल / कोलाहल कडी : १५ जीह = जीभ, अहि = साप विसराल = गुम थर्बु । अदृश्य थq Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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