Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 92
________________ August-2004 87 कथाओमां ज मळशे. अन्य आवां पात्रो अने आलेखनो भाग्ये ज मळशे. आवी कथाओ ज जिजीविषाना प्रबळ उत्कटतम आकर्षणथी मुक्त थवाथी मानसिक शक्ति सिद्ध करी आपे छे. इन्द्रियजन्य उपभोगथी मनने मुक्त करवानी केळवणी पण आवी कथाओ द्वारा मळे छे. देहनो अध्यास छूटे अने देहथी आत्मा भिन्न अने तटस्थ द्रष्टा छे, ए स्थितिना अनुभव माटेनी मानसिक सिद्धि, सज्जता आवी कथाओ आपे छे. संसारना संबंधो मिथ्या छे एवं समुद्रदत्त-समुद्रदत्तानी तेर नातरानी कथा सिद्ध करे छे. एना मिथ्यापणानी प्रतीति करावे छे. संसारना व्यामोहथी मुक्त रहेवाना हेतुओ ज कामकथामां स्खलननां गाढां चित्रो आलेखाया छे. आम एक प्रकारनी मनोवैज्ञानिक सारवार करवान कार्य आवी कथाओ करे छे. पूरक विगत अने माहिती [१] कथाना प्रकार : १. अग्निपुराण, अध्याय ३३७ प्रमाणे १. आख्यायिका, २. कथा, ३. खंडकथा, ४. परिकथा, ५. कथानक २. हरिभद्राचार्य प्रमाणे १. अर्थकथा २. कामकथा, ३. धर्मकथा अने ४. संकीर्णकथा ३. ध्वन्यालोक (आनंदवर्धन) प्रमाणे : १. परिकथा, २. सकलकथा, ३. खंडकथा, ४. आख्यायिका, ५. कथा काव्यानुशासन (हेमचंद्राचार्य) प्रमाणे कथाना १. उपाख्यान, २. आख्यान, ३. निदर्शन ४. प्रवल्हिका, ५. मन्थल्लिका, ६. मणिकुल्या, ७. परिकथा, ८. खंडकथा, ९. सकलकथा, १०. उपकथा, ११. बृहत्कथा. (विशेष विगत माटे जुओ : मध्यकालीन गुजराती कथासाहित्यः डो. हसु याज्ञिक, गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर, १९८८, पृ. १७ थी २९) त माटे जुआ : मीनगर, १९८८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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