Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 61
________________ 56 अनुसंधान-२९ पारसनाथ प्रभूनो अंसी पुत्र सदा निज साचो नाथनो पुत्र जे नाथ कहावें आगमवांणमे वाचो । मुनीचंद्रनाथ धणी अवधूता पुरणब्रह्म गुसाइ सिधनगरमांहिं झंडा रोप्या पारसनी ठकुराइ ॥२॥ पारसनाथ तणा जे पुत्ता जालम हे अबधूता छत्रधरा जोगेश्वर छाजे धर्मधणी धर्मदत्ता । त्रीगढ ज्योति झलामल नयरी उजल भोम अवतार पारस राजतणी हद्दमांहें शाशण सिध मझार ॥३॥ सोलकलासंपूरण सिधा जोगारंभ जगाड्यो मुनीचंद्रनाथनी नोबत गाजें मांड्यो धर्म अखाडो । घोर गगन[में गरजे गाजें अनहद भेरी वादे नवरंगा नेजा धज फरुके छत्र धणीशिर च्छाजें ॥४॥ मुनीचंद्रनाथ धरमदत्त देवा कोटीध्वज कहावें केवलज्ञांननी जोत अनंती जोतें जोत जगावें । निज परजा नवरंगी सोहें तीरथ च्यार प्रकारे ग्यांन कला गुरुजी हीत दाखें आगमनें अधिकारी(रे) ||५|| पन्नरे तीथमाहे वांण अनंती भाखी आगम भेवा वेद कुरांण सिद्धांत विचारी काढ्यो माखण देवा । माखणनो वली घृत कीयो हे अगम माहानिध पारे लोकालोकधणी परमेश्वर भाख्यो आगमसारे ॥६॥ केवलज्ञांन अनंत कलामें आगमवाणी वखांणि श्रीजिनराज जोगेश्वर गायो पार परम पीच्छाणी । आलम खलक अपार अनंती युग परमेश्वर जाणे वेद पुराण कुरांण सिधांते आगमभेद वखांणे ॥७॥ सोही साहेब आप संभालो ध्यान धरो निज राजा भव जल सागर पार उतारें सरसे सहि वि(नि)ज काजा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110