Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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August-2004
57
केवलवाण कथीपो भाख्यो भणसे जे नरनारी तेहनी सामीण तेहने तारें केवलधांम मका(झा?)री ||८|| धन्य धणीना जे जगमाहे धर्म सदालिंग ध्यावें मुनीचंद्रनाथजी आगम भाखें होस्य कोडि कल्याण ॥९॥
इती श्रीमुनीचंद्रनाथप्रकाशिके द्वादशांगसारउधारे माहाआगमब्रह्मसिधान्त ब्रह्मज्ञी चैतन ब्रह्म विचार पंन्नर तिथीकलाहेतुनय तथा सोडशसिधकलाहेतुनय अनन्तार्थनिजपरचैतन्यकलारूपब्रह्मसिधान्तवांणी समाप्ता ।
दोहरा ॥ आगमसारउधार रस पुरण केवलज्ञांन । सोलकला संपूरणें वांणी ज्ञाननिदान ॥१॥ पणयालीस गाहा आगली एक सत्त आगमवाण । भणसें आतमभावसुं होसें कोडि कल्याण ॥२॥ पात्र जोइ परचो करी दीजें केवलवाण । धर्मदत्त गुरुदेशना तरसें ते निरवांण ॥३।। सिधवांणी साची सही अगम अनंत अपार । भणतां गुणतां पांमीए सिधसासण जयकार ॥४॥ इति श्रीतिथकला संपूर्णः ॥ लि. मुनी रूपचंदः ॥
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