Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ वाचक भावविजयकृत श्री अंतरीक (अन्तरिक्ष) पार्श्वनाथ छन्द - (सं.) डो. रसीला कडीआ ला.द.भा.सं. विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थभण्डारनी (नं. ३०२३६) ४ पृष्ठनी प्रत परथी प्रस्तुत नकल करवामां आवी छे. प्रतनी स्थिति श्रेष्ठ छे अने तेमां चित्र पत्रांक आपेला छे. हांसियो बन्ने बाजुओ छे. छेवाडे बे अने हांसियानी शरुआतमां ऊभी त्रण लीटीओ दोरेली छे. आंकणी अने अंक पर गेरु भुस्यो छे. प्रारंभे भले मींडं अने अंते समाप्तिसूचक वाक्य छे. कृतिनो वर्ण्यविषय अन्तरिक्ष पार्श्वनाथजीन महिमागान छे. दूहा, अडियल्ल, चालि, देशनामोनो वर्णवतो छन्द, छप्पय, आर्या, गाहा एम विविध छन्दोमां आ कलियुगमां पण जागता-हाजराहजूर एवा प्रभु श्री अन्तरिक्ष पार्श्वनाथना विघ्न, रोग, शोक, संकटनिवारक स्वरूपने वर्णवेल छे. धरतीथी सदा अद्धर रहेती एवी मूर्तिने प्रणमी पुरुषादाणीय पार्श्वनाथना बिम्ब तथा फणा कवि झडझमकयुक्त वर्णन करे छे वाचकना मनने मोही ले छे. चारणी साहित्यनी झाडझमकनी असर अहीं वरताय छे. पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा- रूपवर्णन खूब सुन्दर छे. अन्त्यानुप्रास अने प्राससांकळीथी निर्मित आ कृति श्रवणमधुर बनी छे. अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ प्रभुनो महिमा देशभरमां तो खरो ज पण विदेशे-अरबस्तान, सिलोन, इराक, अफघानिस्तान, बलुचिस्तान, चीनमां पण एटलो ज छे तेवी कविनी वात, प्रभुना महिमासूचक छे. कडी २५ थी कडी ३१ सुधीनां स्थळनामोनो एक जुदो अभ्यास भौगोलिक सन्दर्भने ध्यानमा राखीने करवा जेवो खरो. . कृतिमांना अंकने में सुधारी सळंग नंबर आप्या छे. कृतिमा ११ नंबर अपायेल नथी. १५ नंबर बे वार अपायो छे पण एने सुधारीने अहीं मूक्या छे. ष नो ज्यां ख ना अर्थमां छे त्यां ख करीने ज मूक्यो छे. अन्ते कवि पोतानी गुरुपरम्परा (विजय देवगुरु-विजय प्रभसूरि) आपी पोतानुं नाम (भावविजय वाचक) आपे छे. उपरांत प्रस्तुत कृतिनो समय पण आपे छे. वि.सं. १७५० मागशर वद १४ना रोज कृति रचाई छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110