Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 48
________________ August-2004 नवरसकेवलस्वरूपदर्शननन्तर अथ श्रीमाहाविद्याज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजी प्रकाशिते दशमांगे दशमाहाविद्या श्रीजिनशाशणमाहालब्धीसिद्धीकरण ज्ञान तथा प्रकृतिमायास्वरूपप्रकाश दशमीतिथीकलाहेतु नयज्ञांनवांणी : चालि: दशमें अंगें देवी दाखां देख दया कुरुणाली साधां केरी सासणमाता आगमअंगिं भाली । दशे विद्या दशमी तिथ देखो दोयविध वेद वंचाणी हंसा सासण लोक मंडाणो कुरुणा हे निरवाणी ॥१॥ करामात नें विद्यालबधी परशाशण परमांणो हंसा मात वडी हीदवांणी फोरवणा फरमाणो । करामात कत्तेब कुरांणी वांचे विद्या वेद वखाणे आगमशाशण लबध वतावें साध जके सोही जांणे ॥२॥ मंत्र मंडाण विद्या परशाशण आतमशक्ति अपारे साध माहाबल फोरवी साधें रूप रचे वसतारे । ए परसासन केरी माता हंसा रूप वखांणं विक्रे लबध करे बलवंती देखो लोक रचाणं ॥३॥ लोक तणी जे माया सघली हंशादेवी भेद सुभाशुभ लोक पसारो साधें बोले आगम वेद । केवलमाता हे कुरुणाली सिधतणी धणीयांणी सीधतणा जे शासन वाधे केवल छे निरवांणी ॥४॥ केवल लबध पमाडे सोही अतीसय विद्या उपें करामात धणीनी देख जगाडे केवल मंडप जोपें साधा हंदी सामण माता तारण देव दयाली संवररूपें साध सुधारे आगमपंथ उजाली ॥५॥ आश्रव हंसा हे परसासण लोकतणो वसतार संवर ते निजसासण सिधा केवल लोक अपार । Jain Education International 43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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