Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
August-2004
41.
आठम तिथ आराधन कीजे शाशणदेव संभारो पिंडब्रह्मंड परज अनंती मांहें नाथ तुमारो । आदिनि योगणनें शिर बेठो आदि निरंजण जोगी आठमतीथ आराहण कीजें निज साहिब उपजोगी ॥९॥ धर्मधणी जिनराज जगाडें तीरथभेद अखाडे पिंडब्रमंडमें तीरथ थापी साहिब सांत जगाडें । आठम तिथनें चंद उजालो टालो अंधेरी रात मुनीचन्द्रनाथ बडे गुरु पीर बेठे साहिब साथ ॥१०॥
इति श्रीलोकनालज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते योगनिधिज्ञाने लोकनालपिंडब्रह्मंडे चैतन्यशक्तव्यापक अष्टमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीनवरसज्ञानेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजी पर्मजोगेश्वरप्रकाशिते श्रीनवरसरूप नवरंगपारब्रह्मनिजजगदीशर केवलस्वरूपपिंडब्रॉडे दर्शनतत्त्व नवमी कलातिथी नवमांगे हेतु नयज्ञानवांणी :
चालः नवमें अंगें अंत करंदा नवमी तिथ वखांण नवमें जे गुणठाणे आयो होसे केवलनांण । केवलज्ञांनतणो भंडार नाथ अमीणो सोही देखि जिनेशर जालम जोगी गाजे ज्ञानमे जेही ॥१॥ नवरंग केवलना[ह] हमारो नवरस रूप बिराजे माथे छत्र धर्यां छे त्रण्ये अनहद नोबत गाजें । शीशे मुगट मणी सोहंदा कुडल कांन कलंदा पंचरंग पीतांबर मेखल पेंहरां बाजूंबंध जडंदा ॥२॥ हार अनोपम कंठें राजें मोहनमाला छाजें आगे चक्र धर्यो धणी मेरे तीन भूवनमें राजे । उंची इंद्रध्वजा फरराइ त्रीगढ कोट हवंदा चैत तणी च्छाया युगसाहिब बेठो राज करंदा ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110