Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ 40 अनुसंधान-२९ दो विध त्रस्य ने थावर देही पिंड सवे युग पुर्यो चैत्यन्य आपसत्तामांहे साधे जोण भरी जग जुर्यो ॥२॥ वसनाडिमहि तुं देखत वांछां पंड ब्रॉड विचार षट् चक्र रचीनें षोहण बांधो मांड्यो गर्भ मझार ।। सात पयाले जे साव धरंदा साते दोजग जांणो मुलसठाणे नाग मंडाणा चहुविध पंकज थांणो ॥३॥ गणाधीपती असुराहद्दनायक वामी दाहेणवासो गुझ तणो षटपंकज खोलो भवनपती जिहां भासो । ब्रह्मा सासणनो छे सामी असुरां राज चलावें वांमी दाहणनाडिमां बुझो बीजो चक्र बनावें ॥४॥ नाभीमंडल केसव बेठो दशेविध पंकज दीसे मेरुथकी जे मूल मंडाणो देख असंख्या द्वीपें । मानव लोक कह्यो इण भौमी तीरज जोण अपार त्रीजे चक्र थकी छे ताली नीशरीयो युगपार ॥५॥ शौधर्म आदि द्वादश लोके पंकज बारे बोले आठदलां अध पंकज जोतिक मनराजा जिहां डोले । अनाहद चक्र महि शिवशाशण वामी दाहिण नाडि सोले पंकज पीठ रचाणो ग्रीवामंडल वाडि ॥६॥ आगे भुह अनुत्तर आवें पांचे. इंद्री प्राजो त्रिविधा तत्त्व रह्यां तिण थांने पंकज दोयसरा जो । ब्रह्मतणो जे थान अणुत्तर जिहां गुरु पीर जगाडे हजार दलें जिहां खेल रचाणो आगमपंथ आखाडे ॥७॥ ध्वन्य अनाहद्द घंट गरजे चोसठ मणना मोती चोसठ पंकजमां ध्वन गाजें जांण जलामल जोति । आगि चक्रशिला छे तालुं ते परसिध कहंदा अलष धणी जुगसाहिब सोही बेठो राज करंदा ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110