Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
38
_अनुसंधान-२९ जे जेहनो छे साहिब सोहि बंदगी भजना ध्यान मुनीचन्द्रनाथ बडे अवधुत्ता दाखें ब्रह्मगनांन ॥८॥
इती श्रीषट्जीवपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथ षद्रव्यादि षटविधि जीवाजीववीचार षष्टमी तीथी कलाकथननन्तरं : अथ श्रीमुनीचन्द्रनाथजी प्रकाशीके सप्तमांगे श्रमणोपासकसेवकपदस्थिति धर्मस्वजनसंगसामीसेवक स्थितिस्थापना सप्तमी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चाल: सातमें अंगें साथ सज्यो हे सातम तथ वखाणा जालम जेह वडा जोगेस्वर जे गुरु पीर वंचाणा तेणे सेवक साथमे लावो श्रावक पंथ सुधारे देख मुरीद जे साहिब हंदा भावें भक्ति विचारे ॥१॥ षटदर्शन उपासक होवें आपणो तीरथ साधे धर्म धणी जुगधोरी ध्यावें नाथ निरंजन लाधे । साहिब हंदा मानव मेली वाछल हेत विचारो साजण ए दुनीयानां सरवे तेमांहि नाथ तुमारो ॥२॥ जे कोए साहिब हंदा सूरा पंथ वहंदा पूरा ते सहु साजण ताहरां बुझो साहब तेह हजुरा । जीत जतीवृत हे गुरु पीर सेवक सेवा सारो धर्मधणी जिनराजनो मांडें नाथ भजें युग पारे (रो) ॥३॥ वेद पुरांण कतेबि वांचें जोये सिद्धान्त विचारी जे फरमांण हुकम चलायो आगन्यां सोह संभारी । आपणो साहेब जे देखलावें तेणें पंथ चलंदा केहर कमाइ हंसा छांडें सोहि साहेब हंदा ॥४॥ साहिबना छे सोही साचा कुडा केथ कमा केहर थकी जे दोजग पांमे भिस्त कहांथी पावें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110