Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ August-2004 45 चालः आगें तिथ अग्यारे अंगें करमविपाकनें छोडो आव्यो देख इग्यारमे ठाणे आगें केवल जोडो । अंग इग्यार लखावो भाई साधांने तेह दीजें विद्यासासणनें विसतारो आगमपंथ ठवीजें ॥१॥ रुद्र इग्यार क रचाणो (?) ते परसासण भाषे ते परपंच विपाक छंडावो अंग अग्यारनी साधे । पडिमाभेद एकादश मंडो आतमचंद उजालो तीरथनाथ धणीनी वांणी तीरथ आप संभालो ॥२॥ सूत्रतणी जे विद्या जांणो सोही साध सधीरा वेदपुरांण कुरांण पच्छांणो जालम च्छे गुरुपीरा ॥३॥ जे जिनराज भजे भगवंता श्रीजगनाथ जिणंदा त्रिविधा जे परमेश्वर मांहें केवल आप कहंदा । वेद पुरांण कुरांण सिद्धान्ते जोयो अर्थ विचारी पारतणो पुरसोत्तम बेठो अणकरता अधिकारी ॥४॥ . करता दोय कहो परमेश्वरः अलष नारायण आपें संकर लोकधणी जे साचो भौण बहेविध थापें । ब्रह्मा केशव रुद्र कमावें वसतरयो युग वेद अंग अग्यारे आगम मांड्या सासण सिधसंवेद ॥५॥ मारग ए छे सीधां हंदो सूरा तेह पच्छांणे. ए जिनशाशन उजल अंगें आगम वेद वखांणे । पर करता परमेश्वर दाखें बोली वेद कुरांण लोकतणी जे लीला देखें करमतणें मंडाण ॥६॥ आपतणो परमेश्वर केवल सिधतणो जगदीस दोयविध आगे करत वसंभर शाशण दोय जगीस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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