Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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August-2004
दृष्टिवाद ए बावन अक्षरथी आगळ नी बाबत ( बावनबारो ? ) छे एम पण सूचवायुं छे.
१३मी 'चाल' मां पुनः 'निगम' जोवानुं सूचन मळे छे. आ चालमां ब्रह्म अने ब्रह्माण्ड अनन्त - अगम होवानुं वर्णन छे. केवलज्ञान ते शक्ति, साहिब ते नाथ (पति), तथा ज्ञानमां भासता अनन्त पर्याय ते अनन्त प्रजा रूपे कविए वर्णवेल छे.
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१४मी 'चाल' मां चौदश तिथि, १४ भुवन, १४ कळा, इत्यादिना आलम्बने सिद्ध-मोक्षपद - केवलज्ञान इत्यादि वातोनुं निरूपण छे. आमां 'निवाज' ( नमाज) तथा 'संध्यावन्दन' अने साथे 'पडिकमणुं' आ त्रणनी तुलना नोंधपात्र छे. महदंशे आखीय रचनामां अमुक निरूपण सतत पुनरावर्तित थतुं होवानुं लागे.
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१५मी 'चाल' मां पूनमतिथिनी अने १५ कळानी वात थई छे. सिद्धना १५ भेदने पण सांकळवामां आव्या छे. आ चालमां पण 'निगम' शब्द त्रणेक वार आवे छे, जेमां ९मी कडीमां तो 'निगम' ने वेद-पुराणसिद्धान्तनी साथेज गोठव्यो छे. १२मी कडीमां 'मोक्ष' रूप सिद्ध नगरीने शिवपुर - पाटण तरीके ओळखावीने तेनी तुलना 'भिस्त-मदीना' (स्वर्गमां मदीना नगरी ? ) साथे करी छे.
१६मी 'चाल' मां जीवमांथी १६ कळाए सिद्ध- शिव थएल आत्माना तथा तेना निवासरूप मोक्षना स्वरूपनुं विशद वर्णन छे. आखी कृतिमां प्रथमवार अहीं १३मी कडीमां 'पारसनाथ' एवं नाम जोवा मळे छे.
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१७मीं 'चाल' कलशरूप ढाळ जणाय छे. तेमां प्रत्येक कडीमां 'मुनीचन्द्रनाथ - धरमदत्त देव' नुं नामाचरण थयुं छे. 'पारसनाथ' नो उल्लेख पण एकथी वधु वार थयो छे. छठ्ठी कडीमां कर्ता कहे छे के 'पन्नर तिथ' नामे आ रचनामां आगमवाणी निरूपी छे, अने वेद- कुरान - आगमनुं मन्थन करीने माखण तारवीने तेनुं आ रूपे घृत कर्तुं छे, अने ए रीते जिनेश्वरनां गीत गायां छे.'
प्रान्ते ४ दोहरा छे, जेमां १५२ गाथामय 'आगमसारउधार' अर्थात्
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