Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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August-2004
तथा 'आशूर' (आसुरी) शक्तिनो पण उल्लेख छे. छठ्ठी कडीमां वळी 'शेतान, हरांमी, काफर, हमद, केहर' ए अरेबिक शब्दोनो सन्दर्भ खास ध्यानाह छे. तो ७मी कडीमां 'मरद - महेरी, नार- नरोत्तम, श्राविका - श्रावक' ए जोडलांपरक शब्दसमूह, तेमज आगळ जतां ते ज कडीमां 'मेहरी विना हज्ज (हज) न थाय के वेद-याग पण न थाय, माटे आदि शगत ( शक्ति तत्त्व) नुं आराधन (करवुं घटे) ' ए मतलब (स्थूल अर्थमां )नी पंक्तिओ - खास अध्ययनीय लागे छे. 'आदिशक्ति'नो आ आग्रह ज, कर्ता चारण होय तेवी छाप ऊपसावी जाय छे.
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छठ्ठी 'चाल'मां छठ्ठे आगम-ज्ञातासूत्र, छठ तिथि, छ द्रव्य बधां जैन तत्त्वोनुं निरूपण थयुं छे. छ युगनी पण वात छे. छ युग आरा. 'घट घट साहिब देख तुं ग्यांनी' ए पंक्ति कबीरनी 'घट घट में वह सांई रमता' ए पंक्तिनी याद आपी जाय छे. आमां 'कहेर' न करवानी ने 'खयर, महेर ने बंदगी' तेमज 'कुरुणा' - (करुणा) वगेरे करवानी शीख, वेद-पुराण - कुराणना नामे आपी छे.
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सातमी 'चाल' मां सातमा अंगसूत्र ( उपासकदशा) नो निर्देश सातम साथे मेळ सधाय तेम करेल छे. उपासक एटले श्रमणोपासक श्रमणने अहीं 'गुरु', 'पीर' तरीके अने उपासकने 'सेवक', 'मुरीद' तरीके ओळखावेल छे. 'जती - वृत्त' (यतिव्रत) वाळा गुरु ते पीर, एवं स्पष्टीकरण त्रीजी कडीमां पण छे. 'सिद्धान्त' एटले 'वेद, पुरांण, कतेब', अने तेनी आज्ञा ते 'फरमाण, हुकम, आगन्या' एम पण समजूती कडी ४मां छे. 'आपणो साहेब ( पीरगुरु) जे पंथ बतावे ते पंथे सदा चालवुं अने 'कहेर' तथा 'हंसा' (हिंसा अने त्रास) छोडवा - एवी शीख पण आपी छे. आम वर्ते ते ज साहेबना साचा सेवक; बाकी 'केहर' करवाथी तो 'दोजग' (नर्क) ज पामे, 'भिस्त' (बेहिस्त - स्वर्ग) न मळे. वळी ७ व्यसननां निवारणनी पण शीख आमां आपी छे.
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आठमी 'चाल' बहु रहस्यपूर्ण होय तेम लागे छे. तेमां जैन परिभाषाना खासा शब्दो तो छे ज; पण तेमां एक बाजु जैनमान्य लोकपुरुषनुं शब्दचित्र आलेखेलुं जणाय छे, तो तेनी साथेज, योगमार्गना षट्चक्रो, कुंडलिनी नाग,
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