Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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August-2004
35
इति श्रीकर्ता ब्रह्म जगत्रेश्वर चतुर्विध लौकीकविस्तार चतुर्विध वेदशास्त्रे लौकविधि चतुर्दशपुर्व वेदोमे चतुर्वेद पुर्वामै तथा द्वादशांग द्रष्टीवादचतु ध्येन चतुः जिन-लोक-व्याख्यान-चतुर्भेदलोकविस्तार चतुर्थीतिथीकलाकथनानन्तरः अथ श्रीज्ञानशक्तेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासिता लोकालोके निजपरसम्यक्त्वमिथ्या सासण निजनिज-ज्ञानमायाशक्तिआराधन निजनिजनाथआराधन निजनिज सिधसासणप्राप्ती पांचम सिधगतिशाशणस्थित आराध पंचमीतीथी कलाहेतु नयवांणी :
चालिः पंचम अंग तिथी युग प्राजो चवद भवन पर सोहें आदि सगति कहो भगवती माथे धणी ते धार्यों हे । चोवीस दंडकमांहि सजांणी षट् द्रव्य नाडी भेद असुर सुर नागंद लख चोरासी पूर्यो पिंड उमेद ॥१॥ मानवलोकमांहें धर्म साधो पंचम थांन चढंदा चोथ तिथि युग च्यारे हुया पंचम मोक्ष वहंदा । केवल माया जैन तणी जे जोगण केवल जागे शाशण मोषतणी धणीयांणी एह निरवांणी आगें ॥२॥ नवन धणी जे जवन आराधे शैवी सैव संभारें जैन तणो युग साहिब जैनी जैन शगत अपारे । आदम बाबो बीबी हवां , लषमीनारायण छाजें श्रीजिनराजनि शाशणदेवी देख निगम पद गाजें ॥३॥ ब्रह्माने ब्रह्मांणी रूपें शिव पारवती सोहें करतारूप तणो छे आगम ए परसासण जोहे । श्रीजिनशाशन हे निरवांणी पारनी खलक वीधारे देखि भविजन मानव सोहि पंचम याच्छा तारे ॥४॥ पांचमतिथ आराधा(ध)न कीजें पांचमें अंग अपार आदि शगति निज परसासण जागवीजोगभंडार ।
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