Book Title: Anusandhan 1998 00 SrNo 11 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ अनुप्रासने लाटानुप्रास कहेवामां आवे छे. आ पांचमा पद्यमां छेकानुप्रास छे. "विभावरीनाथ विभास्वभावा" तथा "वामेय मे कामितका तनश्री" आ बन्ने पादोमांना बीजा पादमां 'भा' अक्षरनी वारे वारे आवृत्ति थयेली छे. अने त्रीजामां एटले 'वामेय' ए पादमां 'मे' 'का' अने 'त' अक्षरनी आवृत्ति थयेली छे. __ छठं पद्य तो महायमक रूप छे, केमके एमां चारे पादो यमकमय छे. आवां यमकवाळां पद्योनी गणना चित्रकाव्यमां थाय छे. आवां पद्योमा विशेष करीने शब्दोनी चमत्कृति होय छे. अर्थनी तो खेंचाखेंच करवी पडे छे. तेम ए अर्थमां कोइ विशेष खूबी पण नथी आवती. आवां काव्यो शब्दप्रधान होय छे, एटले एमां शब्दनी ज चमत्कृति विशेष रीते ध्यान खेंचे एवी होय छे. आ पद्यो जोनार पंडित आ हकीकत विना प्रयासे समजी शके एम छे. आ पद्योनी अवचूरि पण मळे छे. ए अवचूरि पण आ साथे ज दरेक श्लोकनी नीचे आपेली छे. एमां [ ] आवा कांउसमां जे मूकेलुं छे ते संपादके पोते शुद्धरूप बताववा मूकेलुं छे. केमके अवचूरिमां लहियानी सरतचूकथी क्यांक अशुद्धि आवी गइ छे. गोळ कांउसमां एटले () आ निशानमा जे लखाण छे ते पण संपादके लखेल छे. ते लखाण एटला माटे मूकेलुं छे के अर्थ समजनार पादना पदच्छेदनी बराबर समज अने क्यांक अर्थनी स्पष्टतानी पण गरज ए लखाण सारे छे. त्रीजा पद्यमां मूळमां 'तारकाय' एम बे ठेकाणे छे त्यां अवचूरिमां एक स्थळे 'तारण' छे अने नीचेना स्थळे 'तारकार' छे ए बराबर बंध बेसतुं नथी माटे त्यां स्पष्टता आपेली छे. ___चोथा पद्यमां 'लसमाननन्द' एवा पाठ छे. एनो अर्थ करतां अवचूरिकार 'अलसः' एवो अर्थ आपे छे. भगवानने 'अलसः' विशेषण बराबर बेसतुं नथी माटे संपादके 'लस' एम सूचवेलुं छे छतां 'अलसः' ने ज अहीं लगाडवू होय तो 'अरस' एम अर्थ करवो जोइए. 'अरसः' एटले जेमने संसारनी प्रापंचिक प्रवृत्तिओमां रस नथी अथवा जेमणे रसना नो जय करेलो छे. चित्रकाव्यमां जेम 'व' अने 'ब' एक मनाय छे तेम 'र' अने 'ल' पण एक मनाय छे. पांचमा पद्यमां 'अबालभाल' अने 'नवालभाल' एमां 'व' अने 'ब' नी एकतानी नोंध आपेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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