Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 11
________________ सोनो पोते विकारने नहीं पामतो छतो स्वीकार करे छे. तेमज देही देहनी जेने उपाधि छे एवो आत्मा स्वयंविकाररहित स्थित् छतो प्रारब्धकर्मानुसार एटले एक मुसाफरनी माफक सारां वा नरसां काम करी, आ जीर्ण शरीरने छोडी बीजा नाम, रुप, जाति, गुण, विषेस वडे पूर्वथी विलक्षण शरीरोने पामे छे. . तेमज वळी कगुं छे केजातस्यहि ध्रुवो मृत्यु धुर्व जन्म मृतस्य च । तस्माद परिहार्येऽर्थे नत्वं शोचितु महर्षि ॥२॥ - भावार्थ:-जन्म्या पछी मृत्यु, ने मृत्यु पछी जन्म छे तो शोक करवो मिथ्या छे. . रामायणमां पण एक स्थळे लख्यु छ के रामचंद्र एक बरवत रात्रिने विशे मनमां एवो विचार करीने निंद्रावश थया हता के मात:काळे हुँ चक्रवर्ति राजा थईश, पण पछीथी सहवारमा चौद वरस वनवास जवू पडयु ते समये रामचंद्रे पोतानी पनि सीतामत्ये पोतानुं आश्चर्य .. प्रगट करतां जणाव्युं के- ... प्रातर भवामी वसुधा धिप चक्रवर्ति

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