Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi
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(२१)
पूर्वोपार्जितकर्मणा विलिखितंयस्यावसानंयदा तज्जायेत तदैव तस्य भविनो ज्ञात्वा तदेतदुवं ॥ शोकं मुंच मृते प्रियेपि सुखदं धर्म कुरुष्वादरात् सर्पे दूरम पागते किमिति भोस्तद्वष्टिराहन्यते॥१०॥
भावार्थ:- जे प्राणीनो पूर्वे उपजावेला कर्म प्रमाणे जे वखते अंत थवानो लखेलो छे ते वखते ते जीवनो अंत थाय छे एवो निश्चय छे, एम समजीने वहालाना मरणनो शोक मूकी यो, अने प्रेम भावथी धर्म करो. हे भव्य जीवो, सर्प नीकलीने छेटे गया केडे तेनी नीसानीने लाकडीथी ठोकवी ते मूर्खाई छे.
ये मूर्खा भुवि तेपिदुःखहतये व्यापारमातन्वते सा माभूदथवा स्वकर्मवशतस्तस्मान्नते तादृशाः ॥ मूर्खान्मूर्ख शिरोमणीन्ननुवयं तानेव मन्यामहे ये कुर्वति शुचं मृते सति निजेपापायदुःखायच। ११॥ भावार्थ:- आ जगतमां जे मूर्ख लोक, दुःख मटवा माटे रोवा कूटवानो धंधो वधारे छे तेनाथी ते कर्मना लीधे तेमनुं दुःख तो घटतुं नथीज पण ते शोकथी उलडं पाप अने दुःख

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