Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 29
________________ (२८) स्थिरं सदपि सर्वदा भृशमुदेत्यवस्थांतरैः प्रतिक्षण मिदं जगज्जलदकूटवनश्यति ॥ तदत्र भवमाश्रिते मृतिमुपागते वा जने प्रियेपि किमहोमुदा किमुशुचा प्रबुद्धात्मनः॥२१॥ भावार्थ:-आ जगत सदा सर्व काळ सत्तारुपे शाश्वत छे तो पण मेघना वादळां जेवू क्षण क्षणमां पर्याय बदलीने हमेश उत्पत्ति अने नाश पाम्यां करे छे. वास्ते करीने आ संसारमां कोई वहालानो जन्म थयो तो तेथी चतुर पुरुषे हर्ष ते शुं करवो? अने कोई वहाला सगानो मृत्यु थाय तेनो.. शोक पण शुं करवो ? कंईज नहीं. लंध्यते जलराशयः शिखरिणो देशास्तटिन्याजनैः सावेला तु मृतेर्नुपक्ष्म चलनस्तो कापि देवैरपि ॥ तत्कस्मिन्नपि संस्थिते सुखकरं श्रेयो विहाय ध्रुवं कः सर्वत्र दुरंत दुःखजनकं शोकं विदध्या सुधीः ॥ २२॥ - भावार्थ:-लोको समुद्र उल्लंघन करी शके छे, मोटा मोटा मोटा ऊंचा पर्वत ओळंमी शके छ, लांबा लांबा देश भोळगे

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