Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi
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संपच्चारुलतः प्रियापरिलसबल्ली भिरा लिंगितः पुत्रादि प्रियपल्लवो रति सुखप्रायैः फलैराश्रितः।। -जातः संसृतिकानने जनतरुः कालोपदावानल व्याप्तश्चेन्न भवेत्तदाबत बुधैरन्यत्कि मालोक्यते॥३५॥
भावार्थ:-आ संसाररुपी वनमां लोकरुपी वृक्ष पेदा थयु छे अने ते संपतिरुपी लता-करी संयुक्त छे. वळी स्त्रीरुपी वेलथी विंटायेलं छे. तथा पुत्रादिक संततिरुपी जेनां पांदडां छे. अने तेने रतिसुखरुपी घणां फळ आवेलां छे. एवं वृक्ष छे तेने काळरुपी दावानल अग्नि जो न लागतो होय तो पछी शुं जोइए ! अने ज्ञानीजन बीजु सुख पग शामाटे खोळे ? वांछत्येव सुखं तदत्र विधिनादतं परं प्राप्यते नूनं मृत्युमुपाश्रयंति मनुजास्तत्राप्यतो बिभ्यति॥ इत्थं कामभय प्रसक्त त्हदया मोहान्मुधैव ध्रुवं दुःखोर्मिप्रचुरे पतंति कुधियः संसार घोरार्णवे॥३६॥
भावार्थ:-आ संसारमा हरेक माणस सुखनी वाच्छना करे छे, अने ते सुख जेनां तेनां कर्म प्रमाणे प्राप्त थाय छे. संसारमा मृत्यु तो थवानुं छेज ए वात नकी छतां लोको ते

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