Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi
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(88)
दो तो लेशमात्र पण थतो नथी, पण उलढुं तेने नुकशान घणुं थाय छे, ते शोक करनारातुं दुःख बधे छे ने तेनां धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष ए चारे पुरुषार्थ बगडे छे. तेनी घु डिमां भ्रम थई जाय छे अने ते रोगथी मरण पामे छे. मूवा केडे ते दुर्गतीमां जनुं पडे छे. अने ते दुर्गतीना लीघे घोर अंधारमां तेने भमनुं पडे छे.
आपन्यमय संसारे क्रियते विदुषा किमापदि विषादः कस्त्रस्यति लंघनतः प्रविधाय चतुःपये सदनं ॥ ४६ ॥
भावार्थ:- संसारतो दुःखथी भरेलोज छे. एवा दुःखमय संसारमां विपत्ति आवी पडे तो ज्ञानी माणसे खेद शामाटे करवो ? नहींज करवो. कारण चारे रस्तानी वचमां घर वांधीने बेशी अने पछी आपणुं घर कोई ओळंगसे तो तेनो डर शामटे राखवो जोइए ?
वातूल एष किमु किं ग्रह संग्रहीतो भ्रातोथवा किमु जनः किमथ प्रमत्तः ॥ जानाति पश्यति श्रृणोति च जीवितादि

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