Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi

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Page 46
________________ विद्युच्चलं तदपि नो कुरुते स्वकार्यं ॥ ४७॥ भावार्थ:-आ माणसने ते कई वायु थयो छे ? के तेने कोई ग्रह वळग्यो छे ? अथबा ते कई भ्रांतिमां आवी गयो छे के तेने थयुं छे शुं ? अरे आ जीवतर विगेरे वीजळीना चमकारा जेवू छे एवं ते जाणे छे, नजरे देखे छे, अने सांभळे छे तोपण पोतानुं स्वहित करतो नथी. द्वतं चौषधमस्य नैव कथितः कस्याप्ययं मंत्रिणो नो कुर्याच्छुचमेवमुन्नतमतिर्लोकांतरस्थे निजे। यत्ना यांति यतोऽगिनः शिथिलतां सर्वेमृतेः सन्निधौ बंधाश्चर्मविनिर्मिता परिलसद्वर्षांबुसिक्ताइव ॥४८॥ भावार्थ:-डाह्या माणसे पोतानुं कोई मनुष्य गुजरी जबाथी " अरेरे में तेने दवा आपी नहीं ! के कोई मांत्रिकने कडं नहीं," एवो शोक करवो नहीं. कारण के आ जीवने काळ आवी पोच्यो एटले सघळा प्रयत्न फोकट जाय छे. जेम चामडाना मजबुत बांधेला बंध होय छे तो पण तेना ऊपर पाणी छांटवाथी ते पण ढीला थई जाय छे तेमस्वकर्म व्याघ्रण स्फुरितनिजकालादि महसा

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