Book Title: Anitya Panchashat
Author(s): Padmanandi Acharya
Publisher: Motilal Trikamdas Malvi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ f ॐ श्री वीतरागायनमः श्री पद्मनंदि आचार्य विरचित् अनित्यपंचाशत् मुळसंस्कृत अने गुजराती भावार्थ सहित स्वर्गवासी शा. श्रीकमदास खुशालदास. मालवीना स्मरणार्थे श्री दिगम्बर जैन ग्रंथप्रसारक मंडळ तरफथी संशोधन करी प्रगट करनार शाह. मोतीलाल त्रीकमदास मालवी. पाकरील स्टेट-वडोदरा. आवृत्ति १ ली. पत ७५०. विक्रमार्क १९६६ वीरनिर्वाण (२४३६ ई. स. १९१०. कीमत. रु. ०-४-०. एभ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CAN N ॐ श्री वीतरागायनमः श्री पद्मनंदि आचार्य विरचित पर अनित्यपंचाशत. e मुळसंस्कृत अने गुजराती भावार्थ सहित. स्वर्गवासी शा, श्रीकमदास खुशालदास. मालवीना स्मरणार्थ श्री दिगम्बर जैन ग्रंथप्रसारक मंडळ तरफथी ___ संशोधन करी प्रगट करनार 1.मोतीलाल त्रीकमदास मालवी, बाकरोल स्टेट-वडोदरा. आवृत्ति १ ली. प्रत ७५०. वीरनिर्वाण २४३६ विक्रमार्क १९६६ ।। ई. स. १९१०. कीमत. रु. ७-४-०. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमदावाद. रत्नसागर प्रीन्टींग प्रेस. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्पण पत्रिका. श्रीयुत् महाशय धर्मधुरंधरे धर्मस्वरूप परमहितैषी दानवीर रा.रा.शेठ.माणेकचंद हीराचंद झवेरी.जे.पी. रत्नाकरपेलेस-मुंबाई. आप सद्गुण संपन्न तेमज विद्योत्तेजक होई, जैनोमां विद्यानी वृद्धि अने जैनोनो अभ्युदय जोवाने उत्सुक छो, सरस्वतिनो दिव्य सुवास आपना सुहृदयमा सर्वत्र ३ प्रसरी रह्यो छे, तेमज श्रीयुत् आप लक्ष्मीनो सदुपयोग करी विश्व विख्यात छो, स्वधर्मना यथार्थ ज्ञाता होई, स्वजन तेमज परजनने दर्शनीय छो, आप अनेक रिद्धी, सिद्धिओमां अहरनिश रमवा छतां निरहंकार होई, आपनामां गंभीरता, उदारता, नमृता, दया, निखालसपणुं, वगेरे उत्तम सद्गुणोनो वास होई मननुं सघलं लक्ष स्वधर्म तेमन जाति कल्याणने माटे-पाठशाळा, बॉडींग हाउस, हीराबाग धर्मशाळा, दवाखाना, वगेरे बीनी AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उन्नतिनी संस्थात्री जेवा, सखावतनां परमार्थ कार्योमा । परोवायेलुं छे. छतां आप कुटुंबना श्रेयसाधक पण छो आयां आवां सुखमद कीर्तिकिरणोनो प्रकाश मारा हृदयपर पडतां जनसमाजनी उन्नतिता हेतुथी अत्यंत आल्हाद सहित भा“ अनित्य पंचाशत् " नामक ग्रंथ 1 आप महानुभावने अविच्छिन्पणे अर्पण करी कृतार्थ था छ ली. ___ आपनो कृपाभिलापी शाह. मोतीलाल त्रीकमदास. मालवी. " . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******* *...................................................................................................... ग्रंथकर्त्तानां ग्राहकोमत्ये आशीर वचन. वसंततिलकावृत, देवो प्रसन्न सघळा तम उपरे हो, संतोष शांती सघळा सुख आपजो हो, कीर्ति अखंड जगमां वळी स्थापजो हो, ingनी भीति हृदयकी कापजो हो. वृष्टि सुधा अमी वणी वरसावजो हो, भक्ति अखंड करवा मति आपुजो हो; सारी स्थिति सुभग भाग्य वसावजो हो, कीर्त्ति तणो विजयमाळ धरावजो हो. देवांशी नूतन प्रभा प्रगटाबजो हो, साचो सुमार्ग सुखनो बतलावजो हो... भीतिथी पंथ नीतिनो समजावजो हो, ने दैवीगुण सघळाय दरशावजो हो. वृत्ति सदाय उमदाज बनावजोहो, आनंद स्तोत्र सघळांय भणावजो हो; 9339982038------------------ १ २ ३ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीठा मधुर अमीपान पीवाडजो हो, आयुः शताब्द शुभवर्ष जीवाडजो हो. सद्धर्ममां सतत् फाळ भरावजो हो, ने ईश धून हृदये उतरावजो हो । भाचीनमार्ग सुप्रतिष्ठा बतावजो हो, सद्धर्म साधनो बळी दरशावजो हो. ___ ली. जाति हितैषी "शाह. मोतीलाल त्रीकमदास मालवी. .AAIAALAAVATATANAMAATAVAT Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. आ विषयपरत्वे केटलीक बीना पद्मनंदी पंचविशंती नामना सर्वमान्य पुस्तकमा जे तेनी संस्कृत टीका सहित छ, तेनुं केटलुक भाषान्तर सोलापुर निवाशी शेठ. हीराचंद नेमचंद दोशी तरफथी थोडा समयपर थयुं हतुं. तेना लीधे दक्षिण सोलापुर महाराष्ट तरफना केटलाक जैन भाईओ दिन प्रतिदिन सुधरवा लाग्या छे अने धीमे धीमे रडवा कूटवाना रीवाजनो साग करता जाय छे. आपणा जैनोमां प्रतिवर्ष निगीत स्थळे कोन्फरन्सो भराय छे तेनी एक बे बेठक गुजरातमा तारंगा, पावागढ वगेरे स्थळे पण थई तेमां पण ते विषय माटे वारंवार दरखास्त मूकाई प्रस्ताव पास थया हता पण तेनो अमल नहीं थतां सघळु कागळ उपरज रहे छे. . .. विष्णु लोकमां मृत्यु पछवाडे दश दिवस सुधी गरुडपुराण वाचवामां आवे छे जेना उपदेशथी केटलाक लोको मुधरता जाय छे. तेवीम रीतनुं आपणा जैनभाईओमां पण “अनित्य पंचाशत्" नामर्नु पुस्तक छे तेनाथी केटलाक लोक अजाण होवाथी धारमीक बाबतोथी विमुख रहेता जोवामां आवे छे. ते आ " अनित्य पंचाशत् " नो उपदेश दररोज पांच पांच श्लोक वांचता जशे तो लोकोना मनमो शोक वि Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारे पड़ी धर्मने रस्ते प्रेराशे एवो आ " अनित्य पंचाशत" वहार पाडवानो हेतु छे... में आ विषयपर आगळ उपर घणुं कहेवामां आव्युं छे. आ चाल सारो छे, एम कही कोई तेनी हीमायत करतुं नथी, तेम ते फरज पाडी बंध करवाने पण कोई तैयार थतुं नथी. आ विषयपर मारे केटलीक वखते वर्तमानपत्र तेमज भाषणोद्वारा चर्चा करवानी जरुर पडी हती, छतां तेमांनी कंईपण असर थई होय तेम जणातुं नथी. रडवू ए स्वभाविक रीते कोई पण ह्रदयभेदक बनाव जोई अगर सांभळीने दरेक माणसने आवी जाय छे केमके एतो करुणारसनो एक भाग छ तोपण अति शोक करवो ए बीलकुल पसंद करवा योग्य नथी. शास्त्रकारोए पण " अति सर्वत्र वर्जयेत" एम जणावेलुं छे. . .... विष्णुना गरुडपुराणमां पण जणावेलुं छे के मरनारनी पूठे बनी शके तेटला धार्मीक कसो करवां. एथी मरनारने पूर्वे कई अनुमोदना थई होय अगर जम्मान्तरमां थाय तो तेथी तेने लाभ थाय छे. आवी रीतनो मळवानो खरो लाभ ते छोडी दई मरनारने दुःख तथा तेनी पछवाडेनां कुटुंबी ( सहोदर ) माणसोनी तन्दुरस्तीनी पायमाली तेमज अमयदि वगेरे दोषो दाखल थाय छे. ते वरफ ध्यान आपता जोवामां आवे छे.. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) बळी केटलाक मूढमति माणसो पोतानुं कोई सगुवहालुं मनुष्य जे स्वकर्मे मृत्यु पामे छ तेनो मोटो शोक आदरीने वेसे छे. ते उपर कडुं छे के- "मरनारने शामाटे रुओ छो रोनार छ क्या रहेवाना" एटले पोतेज एक दिवस खेंचाइ जसे तेनों बिचार लेशमात्र पण करता नथी. एकतो बियसज्जनना मरगर्नु दुःख ने बळी तेना आत्माने रडी रडी नकामो दुर्गतीमा नांखयो आते केवो न्याय ? एक तो "माळापरथी पडवु ने तेने लाकडीनो मार" ए कहेवतने अनुसरीने वर्तन थाय छे. लोको बधी बाबतमां शास्त्रने आडे आवे छे त्यारे आ बावतमा शास्त्र सामु पण जोता नथी, हिन्दु, मुसलमान, ख्रिस्ति, पारसी, वगेरे कोईपण शास्त्रमा कोईपण ठेकाणे रडवा कूटवानुं कहेलुं नथीज एम निःसंदेह छे. भगवद्गीतामा कलु छ के-- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानिदेही ॥१॥ भावार्थ:-जेम पुरुष जुना वस्त्रोनो त्याग करी नवीन ब Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोनो पोते विकारने नहीं पामतो छतो स्वीकार करे छे. तेमज देही देहनी जेने उपाधि छे एवो आत्मा स्वयंविकाररहित स्थित् छतो प्रारब्धकर्मानुसार एटले एक मुसाफरनी माफक सारां वा नरसां काम करी, आ जीर्ण शरीरने छोडी बीजा नाम, रुप, जाति, गुण, विषेस वडे पूर्वथी विलक्षण शरीरोने पामे छे. . तेमज वळी कगुं छे केजातस्यहि ध्रुवो मृत्यु धुर्व जन्म मृतस्य च । तस्माद परिहार्येऽर्थे नत्वं शोचितु महर्षि ॥२॥ - भावार्थ:-जन्म्या पछी मृत्यु, ने मृत्यु पछी जन्म छे तो शोक करवो मिथ्या छे. . रामायणमां पण एक स्थळे लख्यु छ के रामचंद्र एक बरवत रात्रिने विशे मनमां एवो विचार करीने निंद्रावश थया हता के मात:काळे हुँ चक्रवर्ति राजा थईश, पण पछीथी सहवारमा चौद वरस वनवास जवू पडयु ते समये रामचंद्रे पोतानी पनि सीतामत्ये पोतानुं आश्चर्य .. प्रगट करतां जणाव्युं के- ... प्रातर भवामी वसुधा धिप चक्रवर्ति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) सोहं व्रजामी विपने जटील तपस्वी ॥ ३ ॥ अर्थात् - हे प्रिये रात्रे हुं एवो विचार करी निद्रावश थयो हतो के सूर्यनो उदय काळ थतांज हुं चक्रवर्त्ति राजा थईश. परन्तु पछीथी चौद वरस वनवासमां जटा धारण करीने तपस्वी थई रहेवुं पडयुं. माटे काळने रोकवा कोई समर्थ नथी. तेमज ज्ञानी लोकनुं कहेतुं छे के मनुष्य जींदगी एकाळना अनंत प्रवाहनुं मोजुं छे, तेनी उत्पत्ति, स्थिती, अने लय एत्रणे काळमां रहेलां छे. उत्पत्ति अने स्थितीनो काळ पूजाय छे, अने लय काळरुपे वखोडाय छे. वस्तुस्थिती जोतां आ अवस्था प्राणीमात्रने स्वभावतः प्राप्त थाय छे. जन्म्युं ते जवानुं, खील्युं ते करमावानुं, चडयुं ते पडवानुं, प्राणनी माया, ने प्राणनी पूठे झगडो, कोई पांच, पचीस, तो कोई पचास, सो, परन्तु अजरामर ( अमर ) तो कोई नथी. गई कालनुं वृत्तांत ते आजनो ईतिहास, ईतिहास लखनारनो पाछो इतिहास, कोण कोने रडवुं ? जेम अनि सर्वभूकज छे तेम काळ पण सर्वभूकज छे " शीर्यते इति शरीरं " एतो शरीरनो धमज छे के कोई दिवस तेनो नाश थवानोज. पूरण पुरुषोतम नवमा नारायण कृष्ण तेमज चंद्रवंशना युधिष्ठिर तेमज सूर्य-. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंशना मुकुटालंकार राम लक्ष्मण जेवा वीरपुरुषने पण काळने आधीन थर्बु पड्युं. तो पछी मनुष्ये मोहमय बनी, मायामय बनी, प्रश्चाताप या विलाप करवो ए केवळ अज्ञान छे. ज्ञानी.. लोकना आ तत्वज्ञानना अमीझरणाने अमो अभिवंदन आपीर छीए, अने ए बात तो सत्यज छे के नाना, मोटा, गरीब, तवंगर, राय, रंक, ए सघळाने ए ज्ञान उपकारक छे-बादशाह सिकन्दरनी पासे धन्वन्तरी जेवो लुकमान वैद्य (Doctor) अने असंख्य घोडा, हाथी, ऊंट, गाडी, रथ, वगेरे ऐश्वर्य हतुं. छतां मरती वखते तेणे पोताना बे हाथ खुल्ला मूकवा अने सघळी राज्यसमृद्धि तेनी पछवाडे स्वारीमा चढाववाने कयुं हतुं. ते एवा हेतुथी के आ अप्रतिम समृद्धि छतां ते सघलं मूकी मारे काळने आधिन थq पडयुं छे. पहोळा हाथ मूकवानो सबब ए हतो के आ बधो वैभव छोडी खाली हाथे जाऊं छु. अर्थात् काळने गरीब किंवा बादशाह समान छे ने सघळाने तेने शरण थर्बु पडे छे. . चीना लोकमां कहेवत छे के-आ मनुष्य जींदगी खरेखर, कंटाळा भरेली छे, जेना रस्तानी बेउ बाजु लोभ, मोह, मद, मत्सर, आदि शत्रुओ संताई रहेला छे. ते गाफेल मुसाफरने कायर करे छे. परमात्मा तेनी दाद लेई एक भोमियो मोकले Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) छे.जेने आपणे मोत कहीए छीए. माटे मरण थाय छे ते स्व. कर्मानुसार दुनियानी मुसाफरी पूरी थवाथीज थाय छे. एक ग्रीक फीलोसॉफर (विद्वान ) नुं कहे, छे के मरण एटले मात्र लोकान्तरमां जन्म लेवो. खरेखर मरण तो कहेवायज नहीं, केमके आं पापी दुनियामांथी जे खरो भाग्यशाळी होय तेज जलदीथी पोताना अद्रष्टनां फळ आटोपी परलोकने प्राप्त करे छे. तेमज एक अंग्रेज विद्वाननुं कहेवु छे केThe Paths of Glory Lead But To The Grave ( Grey.) एटले मनुष्ये अव्यक्त आदि अने अंतनो विचार मूकी दईने कुदरतना नियमने मान आपी कर्तव्य कर्या जवू, एज राजानुं राजापणुं ने प्रजानुं प्रजापणुं छे. तथास्तु. ___ नोट-आवा नानकडा पुस्तकने माटे प्रस्तावना के उपोद्घात वधू लखवा बेसीये तो "माथु नानुं ने पाघडी मोटी थवा जेवू थाय" आ पुस्तकर्नु कदज प्रस्तावना रुपे छे. एम कहीए तो चाली शकशे. तोपण ग्राहकोनी उपरा उपरी मागजीने लीधे आ पुस्तकनुं मुद्रणकार्य घणुं त्वराथी चलावकुं प.. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) बुं छे. तो हंस प्रकृतिथी वांचकवृंद दोषो प्रति अलक्ष कर एवी शुभेच्छा छे. निवृत्तिवास- बाकरोल. बी. सं. २४३६ विक्रमार्क. १९६६ माघ शुक्लपक्ष पुर्णीमा ली. विद्वजननो कृपाभिलाषी. Motilal Trikamdas Shah. Malvi, Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतीनाथायनमः अनित्यपंचाशत्. ॐ नमः श्री महावीर जिनेंद्राय परमात्मने । परं बह्म स्वरुपाय जगदानंद दायिने ॥१॥ भावार्थ:-ॐ कारना स्मरण पूर्वक जगतने आनंद आपनार परं बह्म स्वरूप परमात्मा श्री महावीर जिनेंद्रने नमन स्कार थाओ. जयति जिनो धृति धनुषा मिषुमाला भवति । योगियोधानां ॥ पहा करुणा मय्यपि मोहरिपु प्रहतये तीक्ष्णा॥१॥ ... भावार्थ:-जिनेश्वर प्रभु जयवंत हज्यो.जेनी वाणी धैर्य रुपी धनुष्यने धारण करनारा योगीरुपी शूरवीर पुरुषने बान शनी पंक्ति रुपी थाय छे. ए वाणी दयामयीले लापण मोहरुपी अमने हणवा माटे बहु जोरदार के. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यद्यकत्र दिनेन भुक्ति रथवा निंद्रा न रात्रौ भवेत् विद्रात्यं बुज पत्रवदहन तो भ्या शस्थिताद्यध्रुवम्।। अस्त्र व्याधि जलादितोपि सहसा यच्चक्षयं गच्छति भ्रातः कात्र शरीरके स्थिति मतिनाशेऽस्यको विस्मयः॥२॥ भावार्थ:-जो एक दहाडो आ शरीरने खावानुं नहीं आप्युं तो रात्रिने विषे ऊंघ आवती नथी. अने जेम अग्निना नजीक कमळपत्र मूकीए तो ते करमाई जाय छे, तेवीज रीते आ शरीरने जो कई शस्त्रनो प्रहार थयो अथवा तेमा व्याधी उत्पन्न थयो अथवा ते जलादिमां डूबी गयुं तो तरत ते नाश पामे छे. माटे हे भाईयो! एवा नाशवंत शरीरना विषे शावत बुदि फेम रखाप ? ने एवं शरीर नाश थाय तेनां आश्चर्य ते चं? कंज नहीं. दुर्गधा शुचि धातु भित्तिकलितं संछादितं च र्मणा विण्मूत्रादि भृतं क्षुधादि विलस दुःखाखुभिश्छिद्रित। क्लिष्टं काय कुटीरकं स्वयमपि पाप्तं जरा वन्हिना थे देत जदपि स्थिरं शुचि तरं मूढो जनो मन्यते ॥३॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) भावार्थ:- आ कायारूपी झुपडुं केबुं छे के जेनी भींतो जोई तो दुर्गंध अपवित्र सप्त धातूनी बनेली, अने तेनापर चामडानो गिलावो, ने वळी अंदर मळसूत्र भरेलां, बळी पाछा तेमां क्षुधा विगेरे दुःखरुपो उंदरे छिद्र पाडेलां एदलुंज नहीं पण पोतानी मेळे घडपणरुपी अग्निथी बळी जाय एवं छतां पण मूर्ख लोको तेने पवित्रने स्थिर ( अजरामर ) माने छे - अंभो बुहुद सन्निभा तनुरियं श्रीरिंद्रजालोपमा दुर्वाता हत वारिवाह सदृशा कांतार्थ पुत्रादयः ॥ सौख्यं वैषयिकं सदैवतरलं मत्तांगनापांगवत् तस्मादेतदुपलवाप्ति विषये शोकेन किंकिंमुदा ॥ ४ ॥ भावार्थ:- आ संसारमां शरीर जे छे ते पाणीना बुड बुडा जेवुं छे. अने लक्ष्मी छे ते इंद्रजाल जेवी छे. अने स्त्री, पुत्र, धन, दोलत तो मोटा पवनथी अथडायला मेघनां वादळां जेवां छे. अने विषयथी नीपजतुं सुख हमेश चंचल एटले उन्मत स्त्रीना नेत्र कटाक्ष जेवुं छे. माटे एवा उपर बतावेला सुखनो नाश भयो तो तेमां शोक ते शुं ? अने मळयुं तो तेथी हर्ष ते पण शुं ? Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) दुःखे वा समुपस्थितेऽथमरणे शोको न कार्योबुधैः संबंधो यदि विग्रहेण यदयं संभूतिदात्रीतयोः॥ तस्मात्तत्परि चिंतनीयमनिशं संसार दुःखप्रदो ये नास्य प्रभवः पुरःपुनरपिप्रायोन संभाव्यते ॥५॥ भावार्थ:-जो एवा नाशवंत शरीरनी साथे संबंध छे अने तेमाथी दुःख भोगवई पडयुं अथवा मृत्यु थयुं, तो ते वखते डाह्या (मुज्ञ) माणसे शोक करवो नहीं. कारण आ काया जे छे ते दुःख अने शोकने उपजावनारी भूमीज छ. माटे निरंतर आत्म स्वरुपर्नु चितवन करवं, जे आत्म चिंतवन करवाथी आगळ आ दुःखदाथी संसारमा शरीरनु उपजबुं तथा मरवू फरीथी थायज नहीं. दुर्वारार्जित कर्मकारण वशादिष्टेप्रनष्टेनरे यच्छोकं कुरुते तदत्र नितरामुन्मत्तलीलायितं ।। यस्मात्तत्रकृतेन सिद्ध्यति किमप्येतं परंजायते नश्यंत्येव नरस्य मूढ मनसो धर्मार्थ कामादयः॥६॥ यं उपजावेलां करमने लीधे आपणो Jhai Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई ईष्ट पुरुष मरण पामे छे अने तेना माटे आ संसारमांजे अतिशय शोक करवामां आवे छे ते केवल भ्रमिष्ट माणसे चेष्टा करवा जेवं छे, कारण के तेवो शोक करवाथी कई पण सिद्ध थतुं नथी, पण उलटुं तेथी-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, वगेरे ते मूर्ख माणस खोई बेसे छे. एटलंज थाय छे." उदेति पाताय रविर्यथा तथा शरीर मेतन्ननु सर्व देहिनां ॥ स्वकाल मासाद्यनिजेहि संस्थिते करोतिकः शोकमतः प्रबुद्धधीः ॥७॥ भावार्थ:-जेम सूर्य जे छे ते अस्त थवाने माटेज उदय पामे छे, तेमज संपूर्ण प्राणी मात्रनुं शरीर जे छे ते नाश थपाना माटेज उत्पन्न थाय छे माटे पोतानो आयुदो पूर्ण थवाथी जे कोई माणस तेमज आपणां सगांवहालां भाईबंध मत्यु पामे छे तेना माटे कोई डाह्यो माणस शोक करशे ! को- . ईषण नहीं. भवंति वृक्षेषु पतंति नूनं पत्राणि पुष्पानि फलानियबत् ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) कुलेषुतद्वत् पुरुषाः किमत्र हर्षेण शोकेन च सन्मतीनां ॥८॥ भावार्थ:- जेवी रीते वृक्ष पान, फूल, फल, आवे छे अने तेनो खरवानो वखत आव्यो एटले नीचे खरी पडे छे; तेवी रीते एक कुळमां मनुष्य जन्म ले छे अने मरवानो वखत आवे मरी जाय छे, माटे समजु माणसे तेथी हर्ष ते शुं ! ने शोक पण शुं करवो ! कईज नहीं. दुर्लघ्याभ्द वितव्यता व्यतिकरान्नष्टे प्रिये मानुषे : यच्छोकः क्रियते तदत्र तमसि प्रारभ्यते नर्तनं ॥ - सर्व नश्वरमेववस्तु भुवने मत्वामहत्याधिया निर्धूता खिल दुःख संततिरहो धर्मः सदासेव्यतां ॥ ९ ॥ भावार्थ:- आ संसारमां टाळी नहीं शकाय एचा भावि atta बनवायी आपणुं ईट (Dear) माणस मरण पामवाथी जे शोक करीये छीये ते अंधारामां नृत्य करवा जेधुं छे. माटे हे बन्धुओ ! आ संसारमां सर्व वस्तुओ नाशवंत (momentary) - छे एम समजीने विवेकी माणसे सदा धर्मनुं सेवन करवुं नोइ . कारण धर्मयी संपूर्ण दुःख मट जाय छे, Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) पूर्वोपार्जितकर्मणा विलिखितंयस्यावसानंयदा तज्जायेत तदैव तस्य भविनो ज्ञात्वा तदेतदुवं ॥ शोकं मुंच मृते प्रियेपि सुखदं धर्म कुरुष्वादरात् सर्पे दूरम पागते किमिति भोस्तद्वष्टिराहन्यते॥१०॥ भावार्थ:- जे प्राणीनो पूर्वे उपजावेला कर्म प्रमाणे जे वखते अंत थवानो लखेलो छे ते वखते ते जीवनो अंत थाय छे एवो निश्चय छे, एम समजीने वहालाना मरणनो शोक मूकी यो, अने प्रेम भावथी धर्म करो. हे भव्य जीवो, सर्प नीकलीने छेटे गया केडे तेनी नीसानीने लाकडीथी ठोकवी ते मूर्खाई छे. ये मूर्खा भुवि तेपिदुःखहतये व्यापारमातन्वते सा माभूदथवा स्वकर्मवशतस्तस्मान्नते तादृशाः ॥ मूर्खान्मूर्ख शिरोमणीन्ननुवयं तानेव मन्यामहे ये कुर्वति शुचं मृते सति निजेपापायदुःखायच। ११॥ भावार्थ:- आ जगतमां जे मूर्ख लोक, दुःख मटवा माटे रोवा कूटवानो धंधो वधारे छे तेनाथी ते कर्मना लीधे तेमनुं दुःख तो घटतुं नथीज पण ते शोकथी उलडं पाप अने दुःख Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ J. (२२) थाय छे. वास्ते जे लोक पोताना सगावहालाना मरणने लीधे शोक करवा बेसे छे तेमने अमे मूर्खना शिरोमणी मानीय छीए. किं जानासि न किं श्रृणोषि ननु किं प्रत्यक्षमेवेक्षसे निश्शेष जगदिंद्र जालसदृशं रंभेव सारोज्झितं ।। किं शोकं कुरुक्षेत्र मानुषपशोलोकांतरस्थे निजे तत्किंचित्कुरुयेन नित्यपरमानंदास्पदंगच्छसि॥१२॥ भावार्थ:-हे मनुष्यरूप पशू ! तुं आ जगत इंद्रजाळ जेवू अने केळना गाभानी पेठे असार जाणतो नथी के शुं ? अने तेवी रीते सांभब्युं नथी के शुं? वळी प्रत्यक्ष तारी नजरे जोतो नथी के शुं ? अरे आ संसारमा पोतानुं वहालुं कोई परलोक जाय तेना माटे तुं शोक शुं-करे छे ? एवू काई आत्म कल्याणचें काम कर के जेनाथी लु सदा काळ परमानंद पदने स थईश. जातो जनो म्रियत एव दिनेच मृत्योः प्राप्ते पुनस्त्रि भुवनेपि न रक्षकोस्ति ॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) तयो मृते सति निजपि शुचंकरोति पूत्कृत्य रोदति वने विजने स मूढः ॥ १३ ॥ भावार्थ:- जे माणस जन्म पाम्यो छे ते मरणनो बखत आवे मरवानो छेज एमां भूल नथी. तेने रक्षण करवा आ त्रैलोक्यमा कोईपण समर्थ नथी. माटे जे कोई माणस पोतार्नु कोई मरी जाथी शोक करतो बेसे छे तेनो शोक जेम मूर्ख माणसे वगडामां, ज्यां कोईपण सांभळनार नथी त्यां मोटा पोकार करीने रोवा जेबुं छे. इष्ट क्षयो यदिह ते यदनिष्टयोगः पापेन तद्भवति जीव पुराकृतेन ॥ शोकं करोषि किमु तस्यकुरु प्रणाश पापस्य तौ न भवतः पुरतोपि येन ॥ १४ ॥ भावार्थ:- अरे जीव, आ संसारमां जे अणगमतुं आवी मळे छे, अने भावतुं नीकळी जाय छे ते बधुं पूर्वे करेला पापने लीधे थाय छे. माटे तुं शोक शुं करे छे ? ते पापनो क्षय करवा मांड ! कारण पापनो क्षय थशे एटले पछी अणममतुं Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) आवी पडवु ने भावतुं नीकळी जq ए बने थवानां आगळं मटी जशे. नष्टे वस्तुनि शोभनोपे हि तदा शोकः समारभ्यते तल्लाभोथ यशोथ सौख्यमथवाधर्मोथवास्यादि यद्ये कोपि न जायते कथमपि स्फारैःप्रयत्नैरपि प्रायस्तत्र सुधीर्मुधा भवतिकःशोकोग्ररक्षोवशः।१५ भावार्थ:-आपणी घणी गमती वस्तु जती रहे त्यारे शोक करीये छीये, पण ते शोक करवाथी ते वस्तु पाछी मले तेम होय, अथवा ते शोक करवाथी कई जश मळतो होय अथवा कोई धर्म थतो होय, अथवा कंई सुख थतुं होय, तो ते करवो ठीकज छे. पण आ चारमाथी एक पण शोक करवाथी यतुं नथी तो पछी कोण समजु माणस शोक करतो वेसशे? कोईज नहीं. एकद्रुमे निशि वसंति यथा शकुंताः प्रातःप्रयांति सहसा सकलासु दिक्षु ॥ स्थित्वा कुलेबत तथान्यकुलानि मृत्वा लोकाः अयंति विदुषा खलु शोच्यतेकः॥१६॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) भावार्थ:- जेम रात्रिना विषे पंखियो एक झाडपर बेसे छे, अने सवारना सर्व दिशामां ऊडी जाय छे तेम माणस पण एक कुळमां आवे छे अने त्यांथी मरीने बीजा कुळमां जाय छे. माटे विचारवान माणस शामाटे शोक करशे ! दुःखव्याल समाकुलं भववनं जाड्यांधकाराश्रितं तस्मिन् दुर्गति पल्लिपातिकुपथैः भ्राम्यंतिसर्वेगिनः ।। तन्मध्ये गुरुवारप्रदीपममलज्ञानप्रभा भासुरं प्राप्या लोक्य च सत्पथं सुखपदं याति प्रबुद्धो ध्रुवं ॥ १७ ॥ भावार्थ:- आ संसाररूपी वन केबुं छे के जेमां दुःखरुपी हाथी भरेला छे, मूर्खाईरूपी अंधकार फैलायेलो छे, वळी ज्यां दुर्गतीरुपी भील लुंटी जाय एवा खराब रस्ता छे. एवा संसाररूपी वनमां संपूर्ण प्राणीमात्र भ्रमण करे छे. त्यां ज्ञानी माणसने गुरुना उपदेशरूपी दीवो जडे तो तेना आधारथी ते पोताना धार्या ठेकाणे एटले मोक्षस्थानमां पहोंची, शके छे. कारण गुरु वचन ते ठेकाणे बहु प्रकाश बतावनारुं छे. यैवस्व कर्मकृत काल कलात्र जंतु Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) स्तत्रैव याति मरणं न पुरो न पश्चात् ॥ मूढास्तथापि हि मृते स्वजने विधाय शोकं परं प्रचुर दुःखभुजो भवति ॥ १८ ॥ भावार्थ:- आ संसारमां हरेक प्राणी पोतानां बांधेला कर्म प्रमाणे जे वखत मरवानो, तेज वखते मरण पामे छे. तेमां घडी आगळ पाछळ थवानी नथी. तेम छतां सगावहालाना मरणथी मूर्ख लोको मोटो शोक आदरीने अतिशय दुःखना भोग थई पडे छे. वृक्षावृक्षमिवांडजा मधुलिहः पुष्पाचपुष्पं यथा - जीवायांति भवाद्भवांतरमिहाश्रांतं तथा संसृतौ ॥ तज्जातेथ मृतेथ वा नहि मुदं शोकं न कस्मिन्नपि प्रायः प्रारभतेधिगम्य मति मानस्थैर्य मित्यंगिनां ।। १९ ।। भावार्थ:- आ संसारमां पंखीओ जेम एक झाड ऊपरथीऊडीने बीजा झाड ऊपर बेसे छे, भ्रमर एक झाडना फूलपरथी ऊडीने बीजा फूलपर बेसे छे, तेम माणी मात्र पण एक Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भव छोडीने बीजो भव हमेश लीधा करे छे. माटे सुज्ञ माणस आ जीवतर बधुं क्षणभंगुर छे एम समजीने कोई वहालुं जन्म पाम्युं तो ते हर्ष करतो नथी तेम कोई वहालुं सगुं मरण पाम्युं तो तेनो शोक पण करतो नथी. भ्राम्यत् कालमनंत मत्रजनने प्राप्नोति जीवोन वा मानुष्यं यदि दुष्कुले तदघतः प्राप्तं पुनर्नश्यति ॥ सज्जातावथ तत्र याति विलयं गर्भपि जन्मन्यपि द्राग् बाल्येपि ततोपि नो वृषइति प्राप्ते प्र - यत्नो वरः ॥२०॥ भावार्थ:-आ संसारमा आ जीवने अनंत काळ सुधी ममता भमता मनुष्य जन्म मळवाज कठण, कदापि ते मळ्यो पण जो नीचा कुळमां जन्म थाय तो ते जन्म त्यां पापकर्मथी नकामो जाय. जो सारा कुळमां कोई वरनत थाय तो केटलीवखत गर्भमांज मरी जाय छे अने केटलीक वखत जन्म थया केडे बाळ अवस्थामां मरी जाय छे. वास्ते धर्मसेवन करवानां साधनो मळ्यां होय तो धर्म साधन करवामां बनतो उद्यम शामाटे न करवो जोईए ? . Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) स्थिरं सदपि सर्वदा भृशमुदेत्यवस्थांतरैः प्रतिक्षण मिदं जगज्जलदकूटवनश्यति ॥ तदत्र भवमाश्रिते मृतिमुपागते वा जने प्रियेपि किमहोमुदा किमुशुचा प्रबुद्धात्मनः॥२१॥ भावार्थ:-आ जगत सदा सर्व काळ सत्तारुपे शाश्वत छे तो पण मेघना वादळां जेवू क्षण क्षणमां पर्याय बदलीने हमेश उत्पत्ति अने नाश पाम्यां करे छे. वास्ते करीने आ संसारमां कोई वहालानो जन्म थयो तो तेथी चतुर पुरुषे हर्ष ते शुं करवो? अने कोई वहाला सगानो मृत्यु थाय तेनो.. शोक पण शुं करवो ? कंईज नहीं. लंध्यते जलराशयः शिखरिणो देशास्तटिन्याजनैः सावेला तु मृतेर्नुपक्ष्म चलनस्तो कापि देवैरपि ॥ तत्कस्मिन्नपि संस्थिते सुखकरं श्रेयो विहाय ध्रुवं कः सर्वत्र दुरंत दुःखजनकं शोकं विदध्या सुधीः ॥ २२॥ - भावार्थ:-लोको समुद्र उल्लंघन करी शके छे, मोटा मोटा मोटा ऊंचा पर्वत ओळंमी शके छ, लांबा लांबा देश भोळगे Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे, मोटी मोटी नदीयो ओळगी के छे, पण मरणनी जे वखत ठरेली छे ते आंखना एक पलक मात्र पण मोटा देवताओथी ओळगी शकाती नथी. माठे आपणुं कोई वहालुं सगुं मरी माय ते वखत पुन्यना काम करवाना मूकी दईने डाह्यो (सुज्ञ) माणस कोई रोतो बेसशे ? कोईपण नहीं. का. रण रोवाथी हमेश दुःखज उपजवानुं है. आक्रंदं कुरुते यदत्र जनता नष्टे निजे मानुषे जाते यच्च मुदं तदुव्रतधियो जल्पंति वातूलतां ॥ यजाड्यात्कृत दुष्ट चेष्टित भवत्कर्म प्रबंधो दया न्मृत्यूत्पत्ति परंपरा मयमिदं सर्वं जगत्सर्वदा ॥२३॥ भावार्थ:-श्रा संसारमा जे लोको पोतार्नु ईष्ट माणस अरी जवाथी रुए कूटे छे, अने कोई ईष्ट प्राणीनो जन्म थवाथी हर्ष माने छे ते बधुं भ्रमिष्ट माणसना बकवा जे छे. कारण के आ आखं जगत पोतानां कयाँ कर्म उदय आधे ते प्रमाणे सदा सर्व काल जन्म मरणना फेरामां छेज, गुर्वी भ्रांतिरियं जड़त्वमथवा लोकस्य यस्मा द्वसन् संसारे बहुदुःखजालजटिले शोकी भवत्यादि। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) भूतप्रेत पिशाच फेरवचितापूर्णे श्मशाने गृह कः कृत्वा भयदाद मंगल कृतादावाद्भवेच्छं कितः ॥ २४॥ भावार्थ:-लोकने आ कई भ्रम छे के लोकनी मूर्खता छे ? कारण अनेक जातना दुःखथी. भरेला एवा संसारमा रहे छे, अने दुःख आवे त्यारे पाछो रोतो बेसे छे. जुओ, ज्यां श्मशानमा मडदां बळतां होय, भूत पिशाचना भयंकर शब्द थता होय, ज्यां बधुं अमंगळ देखीतुं होय, त्यां घर बांधीने बेसवु अने त्यां भूतनी बीक हशे के शुं? एवी शंका - करवी ते केवु कहेवाय ? भ्रमति नभसि चंद्रः संसृतौ शश्वदंगी लभत उदयमस्तं पूर्णतां हीनतां च ॥ कलुषित हृदयः सन्याति राशिंचराशे स्तुनुमिह तनुतस्तत्कोत्र मुत्कश्च शोकः ॥२५॥ भावार्थ:-जेम चंद्रमा आकाशमां सदा काळ भ्रमण करे छे, तेम आ संसारमा पाणी पण भ्रमण करे छे. जेम चंद्रमानो उदय अस थाय छे तेम पाणी मात्र पण उपजे छे अने Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) गरे छे. जेम चंद्रमा नानो मोटो थाय छे तेम प्राणीओनी स्थिती पण चढती पडती थयां करे छे. जेम चंद्रमा मेला अंतःकरणनो छतां एक राशीथी बीजी राशीए जाय छे, तेम पाणी पण एक शरीर मूकीने बीजुं शरीर धारण करे छे. माटे एवा संसारमा हर्ष ते शो ? अने शोक ते शो ? हरखने शोक कई पण नहीं. तडिदिव चलमेतत्पुत्र दारादि सर्व किमिति तदभिघाते खिद्यते बुद्धिमद्भिः ॥ स्थितिजनन विनाशं नोष्णते वा नलस्य व्यभिचरति कदाचित् सर्वभावेषु नूनं ॥ २६ ॥ भावार्थ:- हे भव्यजीवों, आ स्त्री पुत्रादिक बधां वीजळीना चमकार जेवां क्षणभंगुर छे, एम जाणीने तेमनुं मृत्यु थवाथी समजु माणसे खेद शामाटे करवो जोईए ? दुनियामां जेटला पदार्थ छ द्रव्यमां छे ते बधाने उपजवु, नाश थनुं अने स्थीर रहे साथेज छे. जेम अभिनी साथे उष्णता होयने होय प्रियजनमृति शोकः सेव्यमानोतिमात्रं जनयति तदसातं कर्म यच्चाशतोपि ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसरति शतशाखं देहिनि क्षेत्र उप्त वट इव तनुबीजं त्यज्यतां सप्रयत्नात् ॥२७॥ भावार्थ:-कोई आपणुं वहालुं सगुं मरण पामवाथी अतिशय शोक करयो तेथी असाता कर्मनो वंध पडे छे, अने ते कर्म आगळ जतां सेंकडो घणु केलाय छे. जेम वडनुं बीज झी' छे तोपण जमीनमां वावीए तो तेनुं मोटुं वृक्ष थाय छे तेम असाता कर्म बधे छे एम समजीने शोक मटाडवानो प्रयत्न करवो जोईए. आयुः क्षतिः प्रतिक्षण मेतन्मुखमंतकस्य तत्रगताः॥ सर्वे जनाः किमेकः शोचयत्यन्यं मृत मूढः ॥२८॥ भावार्थ:-आर्युदानो क्षय तो समय समय पति थयां करे छे, आर्युदानो नाश तो काळy मोडंज छे एम समजवू, अने ते काळना मोंढामां बघायने जवानुं छेज. तेम छतां एक माणस बीजाना मरणने माटे शोक करतो बेसे छे, ते मूर्ख के नहीं. योनात्र गोचरं मृत्योर्गतो याति नयास्यति ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) सहि शोकं मृते कुर्वन् शोभते नेतरः पुमान् ॥२९॥ भावार्थ:-आ संसारमा जे माणस मरण पाम्यो नथी, अथवा मरण पामवानो नथी, तेवो माणस शोक करतो शोभे, पण जे पुरुष काळने स्वाधीन छे ते शोक करे तो ते शोभतो नथी. प्रथममुदयमुच्चैर्दूरमारोहलक्ष्मी मनुभवति च पातं सोपिदेवो दिनेशः॥ यदि किल दिनमध्ये तत्र तेषां नराणां वसति हदि बिषादः सत्स्ववस्थांतरेषु ॥३०॥ भावार्थ:-आ संसारमा दिनपति ने सूर्य सरखा देव ते पण एक दिवसमां ऊंचा ठेकाणे चढीने पोतार्नु पूर्ण तेज प्रकाशे छे, अने पाछो नीचो आवी जाय छे ज्यारे एवा संसारमां केटलीए अवस्थाओ बदलाई जाय छे त्यारे मृत्यु थयु ए पण एक अवस्था बदलाई कहेवाय माटे तेने वास्ते कोण खेद करशे! आकाश एव शशि सूर्य मरुत्खगाद्याः भूपृष्ठ एव शकट प्रमुखाश्वरंति ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीनादयश्च जलएव यमस्तु याति सर्वत्र कुत्र भविनां भवति प्रयत्नः ॥३१॥ ___ भावार्थः-चंद्र, सूर्य, वायु, ग्रह ईत्यादि नभ चरजीवआकाशमां विचरे छे. घोडा, गाडीओ, बळद, विगेरे थलचर प्राणी जमीनपर चाले छे. माछलां आदि जलचर जीव पाणीमां रहे छे. पण यमराज एटले काळ जे छे ते बधा ठेकाणे पहोंचे छे. वास्ते पाणीओने मरणथी बचवानो रस्तो मुक्ति* (मोक्ष) विना वीजो क्यां छे ! कोईपण ठेकाणे नथी. किं देवः किमुदेवता किमगदो विद्यास्ति किं . किं मणिः किं मंत्रः किमुताश्रयः किमुसुत्दृकिंवा सं गधोस्ति सः . * जीव ज्यांसुधी शुभाशुभ कर्म कर्या करे छे त्यांसुधी जन्म मरणनी संतति चाल्या करे छे तेने संसार कहे छे. पण जीव ज्यारे कमै रहित थाय छे अर्थात शुद्ध अवस्थाने प्राप्त थाय छे त्यारे तेनी मुक्ति केहेतां मोक्ष थाय छे. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्ये वा किमुभूपतिप्रभृतयः संत्यत्रलोकत्रये, यैः सर्वैरपि देहिनः स्वसमये कर्मोदितं वार्यते॥३॥ भावार्थ:-आ लोकमां जीवने कर्मना उदय प्रमाणे आवेलं मरण रोकवाने कोई देव अथवा देवता समर्थ छे ? कोई वैद्य (Doctor) अथवा औषध, मंत्र, मणी, कई करी शके 'छे? कोई मित्र राजा गंध इत्यादिनो कंई ईलाज चाली शके तेम छे ? आर्युदा पूर्ण थये कोइनो ईलाज नथी. गीर्वाणा अणिमादि सुस्थमनसः शक्ताः कि मत्रोच्यते ध्वस्तास्तेषि परंपरेण सपरस्तेभ्यः कियानाक्षसः॥ रामाख्येन च मानुषेण निहितः प्रोल्लंध्य सोप्यंबुधिं रामोप्यंतकगोचरः समभवत्कोऽन्यो बलीयान् . विधेः ॥३३॥ ....- भावार्थ:-आ छोकमां अणिमदि ऋद्धीना धारक देवता जे छ तेमनुं बळ सहथी मोटुं कहेवाय छे. तोपण ते देवता ओनो एक रावण सरखा राक्षसे नाश कर्यो. देवताओने पीडा करनारो एवो मोटो रावण तेने पण एक रामचंद्र स Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) रखा माणसे समुद्र ओळंगीने मारी नांख्यो. अने एवा रामचंद्र सरखा पराक्रमी वीर पुरुष पण काळथी छुट्या नथी तो बीजो कोण एवो वळवान छे जे काळथी बचे ? कोईज नहीं. सर्वत्रोद्गत शोक दावदहन व्याप्तं जगत्काननं मुग्धास्तत्र वधूमृगी गतधिय स्तिष्ठंति लोकैणकार कालव्याध इमानिहंति पुरतः प्राप्तान् सदा निर्दय स्तस्माजीवति नो शिशुनच युवावृद्धोऽपि नो कश्चन ॥ ३४ ॥ ___ भावार्थ:-आ संसाररुपी वन जे छे ते उपजेला शोकरुपी दावानलथी व्यापी गयेलुं छे एवा संसार वनमां मूर्ख लो. करुपी मृग रहे छे. अने ते स्त्रीरुपी हरिणीना विषयमा लपटाई गयो छे. एवा लोकरुपी मृग काळरुपी पारधीना सामा आवी उभा थयेला छे. तेमने आ निर्दय काळरुपी पारधी मारी नांखे छे. मादे आ काळरुपी पारधीना सपाटामांथी बाळक हो, जुवान हो, अथवा वृद्ध हो तेमांनो कोईपण बची शक Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपच्चारुलतः प्रियापरिलसबल्ली भिरा लिंगितः पुत्रादि प्रियपल्लवो रति सुखप्रायैः फलैराश्रितः।। -जातः संसृतिकानने जनतरुः कालोपदावानल व्याप्तश्चेन्न भवेत्तदाबत बुधैरन्यत्कि मालोक्यते॥३५॥ भावार्थ:-आ संसाररुपी वनमां लोकरुपी वृक्ष पेदा थयु छे अने ते संपतिरुपी लता-करी संयुक्त छे. वळी स्त्रीरुपी वेलथी विंटायेलं छे. तथा पुत्रादिक संततिरुपी जेनां पांदडां छे. अने तेने रतिसुखरुपी घणां फळ आवेलां छे. एवं वृक्ष छे तेने काळरुपी दावानल अग्नि जो न लागतो होय तो पछी शुं जोइए ! अने ज्ञानीजन बीजु सुख पग शामाटे खोळे ? वांछत्येव सुखं तदत्र विधिनादतं परं प्राप्यते नूनं मृत्युमुपाश्रयंति मनुजास्तत्राप्यतो बिभ्यति॥ इत्थं कामभय प्रसक्त त्हदया मोहान्मुधैव ध्रुवं दुःखोर्मिप्रचुरे पतंति कुधियः संसार घोरार्णवे॥३६॥ भावार्थ:-आ संसारमा हरेक माणस सुखनी वाच्छना करे छे, अने ते सुख जेनां तेनां कर्म प्रमाणे प्राप्त थाय छे. संसारमा मृत्यु तो थवानुं छेज ए वात नकी छतां लोको ते Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त . मृत्युथी बीहे छे. एवी रीते सुखनी वांच्छनाथी अने मरणना भयथी चित्त आशक्त करीने मूर्ख लोक मोहने वश थई आ. दुःवरुपी लहरो (Waves) थी भरेला संसाररुपी भयंकर समुद्रमां पडे छे. खसुखपयसि दिव्यन्मृत्युकैवर्तहस्त प्रसृतघन जरोरु प्रोल्लसज्जाल मध्ये ॥ निकट मपि न पश्यत्यापदां चक्रमुग्रं भवसरसि चराको लोकमीनौघ एषः ॥ ३७॥ भावार्थ:-आ लोकरुपी माछलानो समुदाय (Multitude) संसाररुपी सरोवरमा मृत्युरुपी धीवरे फेंकेला वृद्धावस्थारूप (Like old age) मयंकर जाळामां इंद्रिय सुखरुपी जलमां क्रीडा करतो छतो पोताना उपर धोर संकट नजीक आव्यु छतां पण जोतो नथी. शृण्वनंतकगोचरं गतवतः पश्यन् बहून् गच्छतो मोहादेव जनस्तथापि मनुते स्थैर्य परं ह्यात्मनः ॥ संप्रातेऽपि च वार्द्धके स्पृहयति प्रायोन धर्मायय चनात्यधिकाधिकं खमसकृत्पुत्रादिभिबंधनैः॥३८॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ:-आ माणस घणाएक जीव मृत्यु पाम्या र सांमळे छे तथा पोतानी नजरे जुए छे. तथापी मोहने वश : थई पोतानुं जीवतर एवीज रीते कायम (अमर) रहेशे एम. माने छे ! वळी वृद्धापकाळ आव्यो तोपण वैराग्यनी ईच्छा करतो नथी, अने पोताना पुत्रादिकना बंधनां वधारे वधारे बंधाय छे. दुश्चेष्टा कृतकर्म शिल्पिरचितं दुःसंधिदुर्बधनं सापायस्थितिदोषधातुमलवत्सर्वत्र यनश्वरं ॥ आधि व्याधि जरा मृतिप्रभृतयो यच्चात्र चित्रं न तत्तचित्रं स्थिरता बुधैरपि वपुष्यत्रापि यन्मृग्यते।३९ भावार्थ:-आ शरीर पापकर्मरुपी-शिल्पिकारे बनावेलं छे. जुओ, आ शरीरना सांधा अने बांधा केटला नबळा छे? वळी तेने बगडतां पण वार नथी, आखा शरीरमां खराव धातू अने मळमूत्र भरेलां छे. आ शरीर नाशवंत छे. तेना लीधे आ संसारमा जे मानसिक दुख अने शारीरिक पीडा तथा वृद्धावस्था, मरण अने घणाएक रोग, वगेरे होय तेमा कांई आश्चर्य नथी. पण आश्चर्य तो ए छे जे एवा नाशवंत शरीरना विषे समजु लोको पण स्थिरता धारे छे, Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) लब्धा श्रीरिह वांछिता वसुमती भुक्ता समुद्रावधिः प्राप्तास्ते विषया मनोहरतराः स्वर्गेपि ये दुर्लभाः।। पश्चाचेन्मृतिराग मिष्यति ततस्तत्सर्वमेतद्विषा श्लिष्टं भोज्यमिवातिरम्यमपि धिग्मुक्तिः परं । . मृग्यतां ॥१०॥ भावार्थ:-आ संसारमा लक्ष्मी प्राप्त थई समुद्र पर्यंत पृथ्वीन राज्य भोगव्यु, अने स्वर्गमां पण नहीं भोगववा मळे तेवा विषय भोग मळ्या; पण आखर मृत्यु तो थवानुं छेज, वास्ते आ बधा रळीआमणा सुरखने धिक्कार छे. कारण एवं सुख तो विष मेळवेला भोजन जेबु कहेवाय माटे मुक्ति जे छे तेज साचुं सुख छे एम समजवू. युद्धे तावदलं रथेभतुरगा वीराश्च दप्ता भृशं मंत्राः शौर्यमसिश्च तावदतुलाः कार्यस्य सं साधकाः॥ राज्ञोऽपि क्षुधितोऽपि निर्दयमनायावजिघत्सुर्यमः क्रुद्धो धावति नैव सन्मुखमितोयत्नो विधेयो बुधैः॥४१॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) भावार्थ:-ज्यां सुधी यमराज क्रोधायमान (क्रोधा विष्ट) थईने सामो दोड्यो नथी त्यांसुधीज युद्ध संग्रामने विषे राजाना रथ, हाथी, घोडा, पोतानुं बळ बतावे छ; अने वीर योद्धा पण त्यांसुधीज गर्व राखे छे अने मंत्र शक्ति पग त्यांसुधीज चाली शके छ शौर्य अने तरवार पण तेटलीज वखत सुधी काम बजावे छे. कारण आ यमराज एटले काळ जे छ त महा निर्दय अने भूख्यो छे तेने खाऊ खाऊं कर. वानीज इच्छा छे. वास्ते ज्ञानी माणसे काळथी बचवानो यत्र करवो. राजापि क्षणमात्रतो विधिवशा,कायते निश्चितं सर्वव्याधि विवर्जितोपि तरुणोप्याशु क्षयं गच्छति॥ अन्यैः किं किल सारता मुपगते श्रीजिवितेवेतयोः संसारे स्थितिरीदृशीति विदुषाकान्यत्र का __ोमदः ॥४२॥ भावार्थ:-राजा छे तो पण ते कर्मना योगे (संस्कारे) करी क्षणमात्रमा रंक थई जाय छे खायो निरोगी तरुण माणस होय छे पण ते कर्मना योगे पलक मात्रमा मरण पामे छे; त्यारे बीजानी तो वातज शी? जगतमां लक्ष्मी अने जी Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तर ए वेज चीजो सार मात्र छे अने ते बननी एवी क्षणमंगुर स्थिति जोवामां आवे छे. तो वळी वीजा कया विषयमां ज्ञानी जने गर्व करवो? कोईपण बाबतनो गर्व करवो नहीं. हंति व्योम स मुष्टिनात्रसरित शुष्कांतरत्याकुलस्तृष्णाळ्थ मरीचिकाः पिबति च प्रायः प्रमत्तो भवन॥ प्रोत्तुंगाचलचूलिकागतमरुत्प्रेखत्प्रदीपोपमैर्यः संपत्सुतकामिनी प्रभृतिभिः कुर्यान्मदं मानवः।४३ .. भावार्थ:-आ संसारपां. जे माणस संपदा, स्त्री, पुत्र, ईत्यादिनो गर्व करे छे; ते मूर्ख पोतानी मुष्टीथी आकाशने ताडन करे छ; अथवा मुकायेली नदीमा तरवा जाय छे; किंवा उन्मत थयो थको तृष्णाथी पीडाईने मृग जळ पीवा दोडे छे. कारण संपदा अने स्त्री पुत्रादिक जे छे ते ऊंचा पवतना शिखर ऊपर छुटेला पवनमा मूकेला दीवा जेवां छे. तेने नाश थतां कईवार नथी, एम समजीने कोईपण चीजनो गर्व न करवो. लक्ष्मी व्याध मृगीमतीव चपल मश्रित भूया मृगाः Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुत्रादीनपरान् मृगानतिरुषा निघ्नंति सेयकिलः॥ सजीभूतघना पदुन्नतधनुः संलग्रसंढच्छरं नो पश्यंति समीपमागतमपि क्रुद्धं यमं लुब्धक। .:भावार्थ:-राजाओरुषी मृग छे ते लक्ष्मीरुपी अति चपल एवी पारधीर पकडेली मृगीने भोमववानी लालचथी पुत्र तथा भाई वगेरे रुपी बीजा मृगोने इर्षाथी अतिशय क्रोधायमान थई मारी नांखे छे. ते वखत पोतानी नजीक ऊभा थयेला, अने हाथमां धनुष्य पकडीने तेने बाण चढावीने मारवा माटे सज (तैयार) थयेला, एवा काळरुपी पारधीने पण देखता नथी. मृत्योर्गोचरमागते निजजने मोहेन यः शोककृत् नो गंधोपि गुणस्य तस्य बहवो दोषाः पुनर्निश्चित। दुःखं वर्द्धत एव नश्यति चतुर्वर्गो मतविभ्रमः । पापं रुक्क मृतिश्च दुर्गतिरथ स्यादीर्घसंसारिताः।४५॥ भावार्थ:-आ लोकमां जे कोई मूर्ख पोतानुं माणस मरवा मांड्यु जाणीने मोहथी शोक करवा मांडे छे तेने फाय Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (88) दो तो लेशमात्र पण थतो नथी, पण उलढुं तेने नुकशान घणुं थाय छे, ते शोक करनारातुं दुःख बधे छे ने तेनां धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष ए चारे पुरुषार्थ बगडे छे. तेनी घु डिमां भ्रम थई जाय छे अने ते रोगथी मरण पामे छे. मूवा केडे ते दुर्गतीमां जनुं पडे छे. अने ते दुर्गतीना लीघे घोर अंधारमां तेने भमनुं पडे छे. आपन्यमय संसारे क्रियते विदुषा किमापदि विषादः कस्त्रस्यति लंघनतः प्रविधाय चतुःपये सदनं ॥ ४६ ॥ भावार्थ:- संसारतो दुःखथी भरेलोज छे. एवा दुःखमय संसारमां विपत्ति आवी पडे तो ज्ञानी माणसे खेद शामाटे करवो ? नहींज करवो. कारण चारे रस्तानी वचमां घर वांधीने बेशी अने पछी आपणुं घर कोई ओळंगसे तो तेनो डर शामटे राखवो जोइए ? वातूल एष किमु किं ग्रह संग्रहीतो भ्रातोथवा किमु जनः किमथ प्रमत्तः ॥ जानाति पश्यति श्रृणोति च जीवितादि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्युच्चलं तदपि नो कुरुते स्वकार्यं ॥ ४७॥ भावार्थ:-आ माणसने ते कई वायु थयो छे ? के तेने कोई ग्रह वळग्यो छे ? अथबा ते कई भ्रांतिमां आवी गयो छे के तेने थयुं छे शुं ? अरे आ जीवतर विगेरे वीजळीना चमकारा जेवू छे एवं ते जाणे छे, नजरे देखे छे, अने सांभळे छे तोपण पोतानुं स्वहित करतो नथी. द्वतं चौषधमस्य नैव कथितः कस्याप्ययं मंत्रिणो नो कुर्याच्छुचमेवमुन्नतमतिर्लोकांतरस्थे निजे। यत्ना यांति यतोऽगिनः शिथिलतां सर्वेमृतेः सन्निधौ बंधाश्चर्मविनिर्मिता परिलसद्वर्षांबुसिक्ताइव ॥४८॥ भावार्थ:-डाह्या माणसे पोतानुं कोई मनुष्य गुजरी जबाथी " अरेरे में तेने दवा आपी नहीं ! के कोई मांत्रिकने कडं नहीं," एवो शोक करवो नहीं. कारण के आ जीवने काळ आवी पोच्यो एटले सघळा प्रयत्न फोकट जाय छे. जेम चामडाना मजबुत बांधेला बंध होय छे तो पण तेना ऊपर पाणी छांटवाथी ते पण ढीला थई जाय छे तेमस्वकर्म व्याघ्रण स्फुरितनिजकालादि महसा Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाघ्रातः साक्षाच्छरण रहिते संसृति वने ॥ प्रिया मे पुत्रा मे द्रविणमपि मे मे गृहमिदं वदन्ने मे मे पशुरिव जनो याति मरणं॥४९॥. - भावार्थ:-आ संसाररुपी अरण्यमां आ माणसरुपी एक बकरानुं बच्यु छे तेने पोतानां कर्मरुपी वाघे त्यां पकडवार्थी ते “मे मे" शब्द एटले मारी बैरी (स्त्री) मारा छोकरां, मारा पैसा, मारु घर, एवा पोकार करतुं मरण पामे छे. तेने आ संसारमा पोताना कर्मरुपी विक्राळ वाघना मोंढामांथी छोडाववा कोई समर्थ नथी... दिनानि खंडानि गुरुणि मृत्युना. विहन्यमानस्य निजायुषो भृशं ॥ पतंति पश्यन्नपि नित्यमग्रतः स्थिरत्वमात्मन्यभिमन्यते जडः॥५०॥ . भावार्थ:-आपणा आयुंदाना दहाडा बहु होय छे तोपण तेमाथी एक दिवस गयो बे दिवस गया एम थोडे थोडे घटता जाय छे. कारण काळ जे छे ते आर्युदाने घटाडतोज जाय छे, एवं नजरे देखतो छतो पण पोताने स्थीर माने छे, ते Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) केवो मूर्ख कहेवाय ? कालेन प्रलयं व्रजति नियतं तेपींद्रचंद्रादयः कावार्तान्य जनस्य कीटसदृशोशक्तेरदीर्घायुषः।। तस्मान्मृत्यु मुपागते प्रियतमे मोहं मुधा माकथा कालः क्रीडति नात्र येन सहसा तत्किचिद विष्यतां ॥५१॥ - भावार्थ:-हे भव्य प्राणीओ तमे सांभळो. आ काळना लीधे इंद्र, चंद ईत्यादिक पण निश्चये करी नाश पामे छे. त्यारे बीजानी तो वातज शी? कारण बीजा जीव तो पतंग जेवा छे, अशक्त छे, अने थोडां आर्युदावाला छे. वास्ते कोई ईष्ट (वाहालं) मरी जवाथी विना कारण मोह करीश नहीं. अने एवं कांई आत्मावलोकन कर के जेनाथी आ शरीर काळना सपाटामां न आवे.. . . संयोगो यदि विप्रयोगविधिना चेजन्मतन्मृत्युना संपञ्चे द्विपदा सुखं यदि तदा दुःखेन भाव्यं ध्रुवं ॥ संसारेत्र मुहुर्मुहुर्बहु विद्यावस्थांतर प्रोल्लसद्वेषान्यत्वनटीकतांगिनि सतः शोकोनहर्ष क्वचित् ५५ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) . भावार्थः-आ संसारमा जो कंईपण मुख हशे तो ते दुई खथी विंटायलं हशेज. जो संपत्ति हो तो तेनी साथे विपति पण रहेशेज. आ संसारमा जे जन्म पामे छे तेनी पछवाडे मृत्यु वळगेलुंज छे. ज्यां ईष्ट संयोग छे त्यां वियोग पण छेज. आ संसारमा वारंवार नाना प्रकारनी गति, जाति अवस्थारुप वेश लई नाचनारा बहुरुपी जेवी स्थिती छे. वास्ते मुज्ञ माणसे कोई काळे शोक करवो नहीं - तेम हर्ष पण करवो नहीं. लोकाश्चेतसि चिंतयंत्यनुदिनं कल्याणमेवात्मनः कुर्यात्सा भवितव्यता गतवती तत्तत्रयद्रोच्यते ॥ मोहाल्ला सवशादतिप्रसरतो हित्वा विकल्पा न बहून् रागद्वेष विषोज्झितैरिति सदा सद्भिः सुखं . - . स्थीयतां ॥ ५३॥ भावार्थ:-माणस पोताना हितने माटे चिंता करे छे पण तेने भवितव्यता प्रमाणे जेटलुं प्राप्त थवानुं तेटलुंज प्राप्त थाय छे. वास्ते मोहना सवबथी वधारे वधेला अनेक विकल्प Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) मूकी दईने रागद्वेष रहित चतुर पुरुषोए सदाकाळ संतोषमा रहे जोईए. लोकागृह प्रियतमा सुत जीवितादि वाताहतध्व जपटाग्रचलं समस्तं ॥ व्यामोह मत्र परिहृत्य धनादि मित्रे धर्मे मतिं कुरुत किं बहुभिर्वचोभिः ॥ ५४ ॥ भावार्थ :- हे भ्रातृवर्ग, आ घर, स्त्री, पुत्र, जीवतर ईत्यादि धुं पवनथी अथाती ध्वजाना कपडा जेवुं चंचळ समजजो ? अने धनादि मित्रना विषे मोह मूकी देई धर्म ऊपर चित्त लगाडो एटले बस छे; वधारे शुं कहेतुं जोईए ? पुत्रादि शोक शिखिशांतिकरी यतींद्र श्री पद्मनंदि वदनां बुधर प्रसूतिः ॥ सद्बोध सस्य जननी जयतादनित्य पंचाशदुन्नतधियाममृतैकवृष्टिः ॥ ५५ ॥ भावार्थ:- आ अनिस पंचाशत् जयवंत हज्यो ते केवुं छे के, श्री पद्मनंदि आचार्यना मुखरुपी मेघथी मीकळेलं छे; तेथी उत्तम बुद्धिवाळा माणसनी उपर अमृतनी दृष्टि करे . Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) अने पुत्रादिकता वियोगथी उपजेला शोकने शांत करना छे बोधरूपी अनाज उपजावनारी जन्मभूमीज छे. इति श्री अनिस पंचाशत् संपूर्णा. विशेषमां कहेवानुं के:--- अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः ॥ नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥ १ ॥ भावार्थ:- आ. शरीर अनित्य हमेश. नथी. (नाशवंत क्षभंगुर छे.. ) वैभव पण सदा रहेतो नर्थी, अने मृत्यु सदा: समीपज ऊभुं छे.. एम जाणी धर्मनो संग्रह करवो जोइए.. ॐ श्री. शांन्ति शांन्ति शांन्ति ॥ 1 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rror oar or or ora अगाउथी ग्राहक थई आश्रय आपनारना मुबारक नाम. __ मुंबाई. रा. रा. झवेरी माणेकचंद हीराचंद जे. पी.. . शेठ. नाथा रंगजी गोषी. आकलुजवाळा , परी. लेजुभाई प्रेमानंददास एल सी.ई... ५ , चोकसी. माणेकचंद लाभचंद चोकसी. ललुभाई लक्ष्मीचंद.. " शा. केशवलाल प्रेमानंददास । , शा. जीवणलाल हलोचंद बोचासणवाळा शा. हाथीभाई माणेकचंद सोनासणवाळा परी. जेठालाल मेमानंददास ... १ एन. सी. पटेल. मीरक सप्लाई डेरी कुं. १ जेठाभाई मानभाइ पटेल दिगम्बर जैन पत्रना एडीटर मा. मुलचंद कसनदास कापडीआ. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , शा. छगनलाल घेलाभाई तासवाला आमोद. १, , शा. संकरलाल तापीदास गांधी १ , शा. हरजीवनदास रायचंद १ , शा. कालीदास हरगोवन शेठ. माणेकचंद दीपचंद , शेठ. जोईतादास केवळदास पुरसा-आमोद. २ ,, ,, शेठ. छगनलाल देवचंद बाकरील. २ , शा. बालगोविंद बापुजी १ , शा. हरीलाल छोटालाल १ , ,, शा. छोटालाल कीसोरदास अंकलेश्वर. २ , , शा. छोटालाल घेलामाई गांधी . शा. नाथुभाई प्राणजीवनदास २. " शा., खुपचंद धरमचंद । 2. शा. कल्याणचंद लालचंद Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) " शा. मोतीचंद झवेरचंद बोरसद. " शा. मोतीलाल भाईजी शा. भाईलाल कपुरचंद डॉक्टर हॉल करमसद् 99 " शा. सीवलाल सांगळदास १ " शा. परसीतम वरजलाल १ ” शा. बेचरदास भवानीदास शा. साकरलाल देवचंद छाणी. ” शा. सुरचंद मनोरदास " ग्रा. मगनलाल गरबडदास ,, शा. मोतीलाल दुलवदासः " पादरा. शा. डाह्याभाई माणेकचंद गांधी. " १. " शा. जेठाभाई शीवलाल १ " शा. तलसीदास रणछोडदास 17 १ " शा. नाथाभाई ईश्वरदास १ १) शा. जमनादास ईश्वरदास ŵ W १ vv १ १ Tren १ "" 99 99 99 39 "? 97 " "" " 12 ** 99 27 29 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mar or om.mon mar on or or or १, ,, शा.कल्याणदास नरसीदास १ मा. जेचंद शीवलाल १ ,, ,, शा. फुलचंद गुलाबचंद शा. सोमचंद नरोतमदास , शा. बेचरदास वीरचंद " शा. अमृतलाल दामोदर , , शा. जेचंद मरबडदास, ,,, शा. जेठाभाई फुलचंद, १ . शा. कालीदास ललुभाई, ,, ,, शा. गीरधरलाल काशीदासदलाल ,, ठकर. आशाराम अवींचलदास. १ , , शा. रायचंद कीलाभाई. कीमबरली (साऊथ) आफ्रिका. K. K. Patel. " १ , , शा. चुनीलाल हाथीभाई १, , शा. बादरभाई हाथीभाई । केरवाडा. १, ,, शा. नरोतमदास हरजीवनदास Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईसणाव. ,,, शा. नरशीदास गंगादास 'पीपळाव. " , शा. देवचंद बाबरदास वडोदरा. ,, ,, शा. परभुदास इश्वरदास ,, ,, शा. केशवलाल त्रीभोवन ,,, शा. हरजीवन लालचंद ,,,शा. भोगीलाल नाथाभाई ,,, शा. वीरचंद त्रीकमदास १ , , शा. नाथाभाई रणछोडदास रा. रा. शा. लालचंद कहानदास. . चेडच. १ .,, शा. पानाचंद मनोरदास १, ,, शा. मंगळदास नाथाभाई शा. मोतीलाल तलसीदास १, शां. भाईजीभाई नाथाभाई ,, शा. वेचरलाल परसोतमदास Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ noran motor or or or or वलासण. १ . , शा. वलवंदास ईश्वरदास १ , , शा. मुलचंद ईश्वस्दास " , शा. कासीदास बापुजी १ " " शा. नारणदास भाईजी जोळ. शा. छगनलाल गंगादास , शा. लालदास बापुजी १ , , शा. त्रीभोवनदास भीखाभाई करमसदवाळा -मोगरी.. शा. जगजीवनदास रुगनाथदास १ " , शा. रणछोड शीवलाल ताणजा. १, , शा. जेठाभाई लखमीदास मखीआवं. १ मे , शा. छगनलाल कुबेरदास १, ,श्री दिगम्बर जैन पुस्तकालय १ , , शा. नेमचंद उजमसी Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ or १ " ,, शा. केवळदास वरधमान १ , , शा. ईश्वरदास वर्धमान १ रा. रा. शा. दलसुख रायचंद १. , शा. जेठाभाई लक्ष्मीचंद १, , शा. कमळशी रतनचंद ,,, शा. वाडीलाल आशाराम हीरापुरवाळा फलटण-जी-सातरा शा. वीरचंद कोदरजी गांधी बडु. १ , शा. हरीभाई मंगळदास १, शा. देवचंद लालचंद शा. भीखाभाई घेलामाई १. ,, शा. मंगळदास रामदास १,, शा. तलकचंद नंदलालः १, , शा. माणैकलाल प्रेमचंद " , शा. सेवकलाल दलपत १, शा. रायचंद मोतीलाल १. , शा. ईश्वरदास बेचरदास orarm or orar or or or Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ran or arrer or or n (५८) दावोल. १ ,, ,, शा. पीताम्बरदास झबेरदास १ , ,, शा. हरकीसनदास माणेकचंद १ , , शा. वनमालीदास नानचंद १ ,, ,, शा. दामोदरदास ईश्वरदास १ , शा. तलसीदास ताराचंद १ ", शा. नरशीदास ताराचंद है, .,, शा. परभुदास शीवलाल ,, शा. केशवलाल नारणदास है , शा. मगनलाल अंबईदास १, ,, शा. जीवाभाई हरीभाई १,,, शा. पानाचंद जमनादास सोजीत्रा. १, ,, शा. ललुभाई हरीदास , शा. सामलदास परभुदास १, , शा. दलपतभाई केवळदास एल.सी.इ १ . , शा. कल्याणदास कहानदास १, , शा. देवचंद कल्याणदास लींचासीवाळा arrer orer Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " , शा. मगनलाल जमनादास ..... १ ,, , शा. भगवानदास झवेरदास १" " शा. चतुरभाइ बेचरदास ,, शा. चुनीलाल फुलचंद करमसदवाळा १, शा. भाईलाल पीतांबरदास सादरा " , शा. नारणदास तलसीदास १ , , शा. मलुकचंद तलसीदास जलालपुरा. १, ,, शा. कसनदास इश्वरदास भाईली. , , शा. रणछोडदास कल्याणदास हुंडाकुवा. , शा. गुलाबचंद मुलजी बाकरोलवाला मालावाडा. १ , , शा. पुंजाभाई दुलवदास ,, शा. छगनलाल बेचरद्रास देथली. १., " शा. चतुराई मथुरदास Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १" , शा. छोटालाल बोघाभाई शा. शीवलाल हरीभाई करोल. ...', शा. वेणीचंद दलुचंद सदानुमुवाड. शा. मीयाचंद गंगुचंद बदराड. १, , शा. ताराचंद छगनलाल लीबासी. १. » शा. बापुलाल प्रेमचंद बाघरा. , ,, शा. जेसींगभाई गुलाबचंद थर्डकलास माजिस्ट्रेट काणीसा. १, , मा. वस्ताभाई ईश्वरदास १, ,, शा. नाथाभाई नंदलाल १, , शा. कालीदास नंदलाल मगरोल. , शा. जेसींगभाई मथुरदास हाल सोजीमा १ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M " 11 " "" ** " 17 " " ܕܕܐ (६१) सांयमा. " शा. हरीलाल नानाभाई ,, शा. ललुभाई तलसीदास " शा. चुनीलाल जमनादास अलाडा. ,, शा. देवचंद जेठाभाई मोरड. , शा. शीवलाल तलसीदास करमसदवाळा तारापुर , शा. प्रेमचंद दीपचंद भोज. शा. मुलजीदास जोईताभाई 19 " शा. मोतीलाल जोईताभाई वसो. शा. डाह्याभाई दामोदरदास " ,, शा. मंगळदास देवचंद " शा. नारणदास हरगोविंददास गांधी सोखडा.. शा. कीलाभाई गुलाबचंद Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १० १ १ oovi air १ १. 99 ". ** " 17 tt " 17 N N 17 R " शा. प्रेमचंद देवचंद नार. ,,शा. कल्याणदास भाईजी: भीलोडा. " शा. ललुभाई गुलाबचंद शा. तलकचंद कुवेरदास "" (३२) घायज: शा. माणेकलाल तलकचंद सोना सण. १. शा. नहालचंद सांकलचंद " शा. जीवराज उगरचंद शा. नेमचंद मगनलाल *** ११. शा. गुलाबचंद नानचंद 77 मांजलपुर. ११. शा. फुलचंद मोतीलाल बांच: 17 शा. भीखाभाई बहेंचरदास 1 शा. फुलचंद्र मगनलाल PI शा. अमयाभाई र 你 LA Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. १. १ १. १ 77 BBB """ १. " शा. केवळदास रणछोडदास १: . शा. चीमनलाल जीवाभाई 99 १ १ 19: 99" """ "" " १. " शा. झवेरदास रणछोडदास ” शा. जेसींगभाई मथुरदास * शा. परभुदास जेसीं गभाई ११. शा. मुलजीसा दामोदरदास: " शा. कलाभाई पुंजाभाई " शा. भाईलाल रणछोडदासः ११ ११" * * * १ ܕ (६३) ११. शा. मुलचंद ईश्वरदास असलाली. ,,शा. मंगळदास माणेकचंद " शा. शा. फुलचंद मोतीचंद तलोद... " शा. जीवराज सुरचंद, करमसद.. १. 9:99 ” शा. रणछोड़भाई जगजीवनदासः " शा. खेमचंद कीलालाई TA ” शा. वस्ताभाई फूलचंद्र " ८. सा... छोटालाल विपक Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) पेटलाद. rror or or oraorr १ ,, ,, शा. छगनलाल हरीभाई ,, ,, शा. मगनलाल कीसोरदास " , शा. मुलजीशा हरीभाई ... ,, ,, शा. फुलचंद रुगनाथदास दाहोद. , , शा.कपुरचंद पुनमचंद बोबड़ा , शेठ. जेचंद नाथजी शेठ. मुलचंद मोतीचंद ,, शेठ. पनालाल उदेचंद ,, शेठ. पनालाल खेमचंद शेठ. नगीनलाल शोभागचंद रखीपाल. शा. देवचंद वहालचंद आकलाव. शा. फूलचंद शीवलाल डबका.' शा. त्रीभोवन अमथामाई है, शा. कालीदास अमथाभाई or Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) १ रा. रा. शा. विठलदास हीराचंद नरोडा ,, शा. चुनीलाल अंबाराम संघवी ओरण. , शा. मंगलदास वीरचंद " शा. छगनलाल मलुकचंद ,शा. हाथीभाई नथुभाई कलोल. १ १ 26 or १ १ १ or on १ " "" 99 भ " " www • "" शा. जीवणलाल गोपालदास " " शा. कस्तुरचंद दीपचंद बहबारीया व्यारा. १ शा. शीवलाल झवेरचंद " १ ,, शा. बेचरभाई खुशालदास 29 हाथीजन. १ बाई रामबाई रॉ. शा. जेठाभाई गोपाळदासना विधवा १ बाई. मणीबाई रा. शा. नागरदास गोपाळदासनी विधवा महूवा. १," " शा, अमृतलाल जगजीवनदास Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M SVAv १ JAG M22 १ १ १ १ M 19 ** 99 19 12 14 "" 77 66 " ** 17. 14 11. (६६) महेर. शा. गीरधरलाल शंभुलाल प्रांतीज. शा. भाईचंद गुलाबचंद " शा. नेमचंद उगरचंद " शेठ. भोगीलाल मगनलाल 99 77 जीबुवा स्टेट, शेठ. गोबीलाल कस्तुरचंद बोचा सण. " पा. वनमाळी हरखचंं पेथापुर. " शा. नानचंद नागरदास " शा. मनिचेद पानीचंद 2, शा. सांकलचंद अनोपचंद 19 महेलाव. , शा. घाबरदास राईजी ” शा. मथुरदास राईजी " शा. भाईलाल मकनदास " Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव १, , शा. हरकसनदास बापुजी १, ,, था. तापीदास जादवजी " ,शा. मगनलाल गुलाबचंद्र __ फतेपुर, " ,शा. चुनीलाल रामचंद १" "शा. माणेकलाल छगनलाल बोडेली. " , शा. मोतीलाल पानाचंद्र ___ खटलाल (खंभात) १. शा. जमनादास परसीवमदास Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. पृष्ट. लीटी. अशुद्ध. रिद्धी अहरनिश नमृता सुप्रतिष्ठा स्वभाविक वर्जयेत. धार्मीक दुर्गती रिद्धि अहर्निश नम्रता सुमतिष्ठ स्वाभाविक वर्जयेत धार्मिक दुर्गति स्विकार स्वीकार विशेनिंद्रावश भवामी प्रजामी. निंद्रावत निद्रावश भवामि ब्रजामि निद्रावश Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ م م م م (६९) स्थिती स्थितीनो वस्तुस्थिती पुरुषोतम . आधीन .. प्रश्चाताप कर्मानुसार वधू थाओ हज्यो. निंद्रों स्थिति स्थितिनो वस्तुस्थिति पुरुषोत्तम आधिन पश्चात्ताप कर्मानुसार م س م CH वधु ه م वदहन - सेना चमगा . दुःखरूपों दुःखदार्थी अनिवार्य मटमाय छे. हो . . हो निद्रा बदहन तेयों चर्मणा दुखरुपी - दुःखदायी अनिवार्य मटी जाय छे २० . १७ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . २१ ccc (७०) ४. भोस्तद्धष्टि तादृशा.. मानीय श्रृगोषि दुर्गतीरुपी बीजा सगुं ओळंमी ४ सगुं यस्मा,द्रसन् त्हदयः भोस्तटि तादृशा मानीये शृणोषि दुर्गतिरुपी बीजो सगु ओळंगी सगु स्थिती ३२ ३ ७ यस्माद्वसन् हृदयः स्थिति सगु बधे छे नभचरजीव वच्छिना चपला माश्रिस भ्रांतो थवा ३७ सगुं बधे छे बधे छे नभ चरजीव . वाच्छना चपल माश्रित भ्रातो थवा १५ ४४ १५ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधावस्थांतर : س س ه م س به अथवा अथवा तस्मान्मृत्यु मुपागते तस्मानमृत्युमुपागते विद्यावस्थांत्तर स्थिती स्थिति सभस्तं समस्तं हज्यो ॐ ॐ शान्ति ॐ शान्ति शान्ति शांन्ति शान्ति शान्ति ५० Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेट तरीके अपातां पुस्तको. पाठशाळाने भेट. १ श्री दिगम्बर जैनधर्म हितेच्छु मंडळ पाठशाळा करमसद. १ श्री दिगम्बर जैनधर्म प्रसारक पाठशाळा : सरिक पाठशाळा पादरा. १ श्री दिगम्बर ज्ञानप्रसारक पाठशाला वड्ड. १ श्री दिगम्बर जैनधर्म पाठशाला सोजीत्रा. श्री दिगम्बर जैन पाठशाला 'अंकलेश्वर. १ श्री दिगम्बर जैन पाठशाला बसो. १ श्री दिगम्बर जैन पाठशाळा राणपुर. १ श्री दिगम्बर जैन पाठशाला दाहोद. बोडौंग हाउसने भेट. १ मरहुम शेठ प्रेमचंद मोतीचंद दिगम्बर जैन - बॉडींगहाउस अमदावाद. श्राविकाश्रमने भेट. १ श्री दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम , अमदावाद. १ श्री दिगम्बर जैन श्राविकाश्रम प्रांतीन.. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) जाहेर खबर. नीचे लखेला पुस्तको रोकडी कीमते लखेला ठेकाणे मलशे. जैन स्तवनावळी-एमा त्रण चोविसी, णमोकारमंत्र, ॐकार - मंत्र, वर्तमान तीर्थकरनां स्तवन, पंच आरति, सर- स्वति स्तुती, देवदर्शन भावार्थ सहित, तीर्थवंद ना स्तुती, महावीरस्तोत्र, निर्वाणकांडभाषा, वि. धार्मिक विषयो छे.. की. रु. ०-३.-६ मिथ्यात्वनिषेध ने सुतकनिर्णय-एमां मिथ्यात्व बावतोथी आपणे केवी अधोगतिमां आवी गया छीये तेमज सुतक विषे केटलीक बीना आपली छे. (छपायछे). की. रु. ०-३-० विद्यालक्ष्मीसंवाद-एमां विद्याथी शा फायदा छे ते विषे हकीकत छे. रवीव्रतकथा-एमां रखीव्रतकथा तथा पार्श्वनाथ स्त्रोत्र छे.' की. रु. ०-१-० धर्मप्रबोधनी-एमां अन्यमतना जैनमत विषे सिद्धांत छे. ___ . की. रु. ०-३-० आलोचना पाठ-एमां करेला पापोनी माफी मागेली छे. . आवृत्ति बीजी छपाय छे. की. रु. ०-१-६ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) अकलंक स्त्रोत्र-एमां जैनधर्मना सिद्धांत आपेला छे. तेमन तेना मुळ रचनार भट्टाकलंकदेवतुं जीवन चरित्र पेटु छे. की. रु. ०-३-० मलवानां ठेकाणां. शाह. मोतीलाल त्रीकमदास मालवी. भाषांतर कर्ता, बाकरोल-आनंद-केरा. शा. छोरालाल घेलाभाई गांधी. अंकलेश्वर-भरुच. दिगम्बर जैनपत्रना एडीटर शा.मुलचंद कसमदास कापडीआ, चंदावाडी-सुरत. शा. भाईलाल कपुरचंद डॉक्टर. करमसद-केरा. ... सहस्त्रपुटी अबकभस्म. ज्ञानतंतुनी नबनाई, स्मरणशक्तिनो नाश, नामर्दाई, तेमन धातूपातथी अशक्त बनेला पुरुषोने खरं पुरुषत्व आपी तन्दुरस्त बनावे छे. बीना वैयो जे तोला एकना रु. ४००-० मां वेचे छे ते तेनी खरी व्याजबी कीमत तोला एकना रु. १०-०-० मा मलशे. एकवार वापरेथी खात्री थशे. वैद्यशास्त्री. हरजीवन जयशंकर भट्ट. बाकरोल-आनंद-केरा. भाषान्वर कर्त्ता पासेथी पण मळशे. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) कामशास्त्र. सघळी जातना नैतिक अने शारीरिक भयमांथी मुक्त रहेवा माटे महेरबानी करी अमारुं उपर लखेडं पुस्तक वांचो. ते आरोग्य दोलत ने आबादीनो उत्तम मार्ग देखाडनार छे. दरेक भाषामा आज सुधीमां तेनी ४२ आवृत्तिमां छ लाख प्रतो मफत बर्हेचाई चुकी छे. विना मुल्ये टपाल खर्च लीवा सिवाय मोकलवामां आवे छे. वैद्यशास्त्री, मणीशंकर गोविंदजी. आतंकनिग्रह औषधालय. जामनगर ( काठीआवाड ). ब्रांच ओफीसो. मुंबाई - कालकादेवी रोड. कलकत्ता - नं. २१४ बाउबजार स्ट्रीट. पुनासीटी - बुधवार पेठ. करांची - चंदर रोड. अल्हाबाद - जोहन्स्टगंज. मद्रास - एम्प्लेनेड रोड. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंखनी अपूर्व औषधी. आ दवा आंखना तमाम दरदो जेवा के-आँखनुं दुख, सामर, गरमीने लीधे आंखमा यती बळतरा तथा पाणीनं गळg, झांख पडवी, छारी तथा फुलनुं पडवू, गोरे तमाम विकारने नाबुद करी तेजस्वी बनावे छे. की. रु. ०-४-० पोष्टेज जुq.. एकवार वापरेथी खात्री थशे. मळवानुं ठेकाj. पुरुषोनम ईश्वरभाई जोशी, - बाफरोल-आनंद-केरा. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुचना. AAY आ पुस्तकनो सघळो नफो अमदावाद श्राविकाश्रमने मदद तरीके आपवामां आवनार छे, तो सर्वे जैनभाइओ योग्य मदद आपी आ पुस्तकना ग्राहक थई आभारी करशे. __ली. परमार्थीनो सेवक. - M. T. Shah. Malvi.